अपने नाश्ते को नमन करें



जिन्हे ख्यालों को समझाना, अच्छा खाना खाना, खुले दिल से ठहाके लगाना पसंद हो वे बड़े दिलचसप होते हैं। यूँ भी जब हम कोई त्यौहार या किसी विशेष अवसर का जश्न मनाते हैं तो बढ़िया भोजन और खूब साड़ी हंसी उसका एक ज़रूरी हिस्सा होती है। इस तरह के मौकों का पूरा मज़ा ऐसे दिलचसप लोगों के बीच ही आता है। 


हम-आप ने यह कई बार अपने बड़ों की यह समझाइश सुनी भी होगी कि "अपने भोजन का सम्मान करो, उसे कृतज्ञता के साथ ग्रहण करो और गुस्से-हड़बड़ाहट में कभी भोजन मत करो। 


वैसे कहा तो यह भी गया है कि अति हर चीज़ कि बुरी होती है और भोजन कि अति तो और ज़्यादा बुरी बला है। इसलिए थाली में उतना ही परोसें जितना पुरे मन से आदर के साथ खा सकें। मेरी माँ कहती है इत्मीनान से मिलने वाला भोजन सबसे अच्छा। उसे यूं भी कई मुहावरे और कहावतें मुंहजुबानी याद हैं और मेरी हर शैतानी के लिए उसकी जुबां पर कोई न कोई कहावत ज़रूर चढ़ी रहती है। 


अब मैं तो खाने कि बेहद शौक़ीन। आलम ये है कि मैं थोड़ा नहीं खा सकती, मुझे थोड़े से ज़्यादा चाहिए होता है करने के लिए। इसका नतीजा यह हुआ कि मैं अपने 25वें सावन तक गोलाकार हो चुकी थी। माँ मुझे ज़्यादा खाने से हमेशा टोकती पर माँ के हाथ के ज़ायकों कि आवाज़ उससे ज़्यादा तेज़ थी। सो सभी लावाबदार ज़ायके मेरे पेट में ठुंसते जा रहे थे। फिर माँ को भी लगने लगा कि ये वजन अब पीछे न आना। लेकिन मैंने इसे ग़लत साबित किया, जल्द ही। कैसे किया! बस यार ठान लिए और अपने पुराने चोगे में लौट आयी। मुझे पैदल चलना खूब पसंद है। पर पैदल चलने के साथ एक दिक्कत ये है कि इससे आपकी भूख भड़क जाती है और आप फिर से खूब सारा भोजन अपने पेट में ठूंस लेते हैं। 


पिछले कुछ सालों से मेरी रोटियों कि गिनती कम हो गई है। पर क्यूंकि माँ के लज़ीज़ व्यंजन मैं कम नहीं खा सकती इसलिए वो तो मैं भकोस ही लेती हूँ। हालांकि जब कोई पूछता है मेरे इस शारीरिक परिवर्तन के बारे में तो मैं उन्हें स्वास्थ्यवर्धक खाने कि ही सलाहें बांटती हूँ। पर मैं स्वयं माँ के अद्वितीय अलौकिक रसास्वादन देने वाले खूबसूरत ज़ायके के बिना नहीं जी सकती। बहरहाल मैं इस नतीजे पर पहुंची हूँ, कि हेल्दी ईटिंग और हैप्पी ईटिंग दो अलग अलग बातें है। और जो चीज़ें खाने में अच्छी लगती हैं, ज़रूरी नहीं वे सेहत के लिए भी अच्छी हो, और जो चीज़ें सेहत के लिए अच्छी होती है, ज़रूरी नहीं कि वे खाने में लज़ीज़ ही लगें।


मैं इस बात में पूरा यकीन रखती हूँ कि अगर खाना मन को भाया तो ज़िन्दगी भरपूर खुशगवार लगती है। और खासकर ही सुबह का दिन शुरू करने वाला नाश्ता। इसलिए अपने दिन अच्छी तरह, बिना शिकायतों के बिताने के लिए हमे अच्छी तरह नाश्ता पकाना चाहिए या पकवान चाहिए, जैसी भी सुविधा हो, (वैसे खुद बनाने का भी अपना मज़ा है), इत्मीनान से उसे खाना चाहिए। 


वैसे अगर आप नाश्ता बनाते भी हैं तब तो बहुत बढ़िया। क्यूंकि यह कोई मामूली बात नहीं, इसके लिए अच्छे हुनर के साथ, अच्छे मिज़ाज़ कि भी ज़रुरत है। नाश्ता बनाने वाले का मूड सब महत्वपूर्ण इंग्रेडिएंट है। 


इसलिए मेरी माँ कहती है, सामने वाले कभाव (मूड) उसके साथ, हमारा भाव बेहद सरल और प्यार भरा होना चाहिए।      

  


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