गौरैया याद है आपको

 


गौरैया 

गौरैया याद है आपको, वो नन्ही सी, कितनी छोटी, सादी- सी, भूरे रंग की, लेकिन उसे देख कर शायद ही कोई नज़र फेर सके। 

पंछी तो कई देखे होंगे आपने ।  सुंदर पंखों वाले, चटकीले रंगों वाले, बेहद मधुर बोलने वाले, तो कुछ इतने फुर्तीले की पलक झपकते ही नज़रों से दूर, छोटी - बड़ी उचाइयाँ तय करते ।  कुछ बमुश्किल ही दिखते हैं। और कई दुर्लभ भी हैं । पर गौरैया की बात सबसे जुदा है। 

हम जानते हैं उसे। हमारे साथ, हमारी ही तरह रहती है। 

वो क्या कहती है, क्या खाती है, उसका घर, सब कुछ देखा - भला है हमारा।

हमे कितनी खूबसूरत लगती है यह नन्ही सी जान। और बहुत अज़ीज़ होना भी चाहिए ।

हमारी प्रकृति भी तो कुछ ऐसी ही खूबसूरत है। और हमारी देखी - भली भी है। हम इसे निहारने लायक बना सकते हैं,  यह अहसास पिछले दो महीनों में दिलाया है खुद प्रकृति ने। कितने ही साल बीत गए थे ये कहते -कहते की प्रकृति को बचाना है। इसके लिए बहुत बड़ा कुछ करने की ज़रुरत भी नही। अपने घर के गिर्द ही जी रही पर्यावरण को सँवार लीजिये। वाहनों को, सड़कों को, हवा को, पानी को थोड़ा आराम करने दीजिये । खुद भी करिये ।  हमेशा तीव्रता और  खलबली मची रहे, तो मन भी बेचैन हो ही जाता है। 

लेकिन हम थे की मथे ही जा रहे थे, नदियों को, सागरों को । हवाओं का सुकून भी छीन लिया। नजाने कितने ही लोग, जो प्रकृति से प्यार करते हैं, कहते रह गए की पहाड़ों, नदियों पर इस तरह हावी मत हो जाओ की इनका दम घुटने लगे। लेकिन हम 'इंसान' कहाँ मानने वाले थे। क्यूंकि हमने दूसरों का सुनना तो कब का छोड़ दिया। और बेजबान प्रकृति की क्या ही बिसात ? हमे लगने लगा था की हमारी बुद्धि हमे सदा अपराजेय रखेगी।  'पेड़-पौधे' तो चल भी नहीं सकते , नदी - तालाब तटों में बंधे हैं, सागर बेवजह नहीं बहकेगा , आसमान भी कहाँ हर वक़्त रूठता है , और परिंदों को तो कब का जीत लिया , वन्य प्राणियों की हदें बाँध दी, पिंजरे में कैद कर लिया।  हमे लगता था की हम इन सभी पे कबज़ा जमा चुके हैं। 

और अचानक सारी हुकूमतें खत्म हो गयी। शक्तिशाली होने का भ्रम टूटा। सर्व शक्तिमान प्रकृति का राज़ बना रहा। इंसान को बाँधा और प्रकृति फिर सवार गयी।  जब हम बंधे, तो जाना की बांधे जाने पर कैसा लगता है । यह भी समझ आया की जिसे जीतने का दावा किया करते थे ,वो कुदरत तो सारे जख्मों से महज़ दो महीनों में ही निजात पा गयी। कैद सोचने का मौका देती है। गर्द हटी, पहाड़ दिखने की ख़बरें आयी।  पानी की कल- कल लौटी। सागरों के तल साफ़ हुए। रातों की स्वाभाविक ठंडक लौट आयी। तारे दिखने लगे। प्रकृति ने याद दिलाया की ख्याल हमे एक-दुसरे का रखना है। खिड़की पर फुदकती गौरैया अब भी साथ थी। पास की मुरलिया की तान ने क्लेश मिटाये ।

जो संवर चुकी है, उस कुदरत को संवरा रहने दें। अब जब हम बाहर आएँगे, तो बहारों को बना रहने देंगे, यही उम्मीद है। 

प्रकृति के नज़दीक आने के लिए प्रकृति को खुद के करीब लेकर आइये। उन ज़रियों को तलाशिये जिनसे प्रकृति का एहसास मिले और सेहत भी। घर के पर्यावरण की भी फिक्र कीजिये। घर में और आसपास पौधे लगाइये। फिर देखिएगा आज लगाए गए पौधे, कल कैसे हमारे मुहाफ़िज़ बन जाते हैं। 

आइये हम पृथवीवासी, और ख़ास तौर पे हम भारतवासी जिनके पास बहुमूल्य प्राकृतिक निधि है उसका ख्याल मात्र रख लें, बाकी तो प्रकृति संभाल ही लेती है।


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