बहुत दिनों से बांध रखा था, आज बहने दिया। दो काम एक साथ हो गए, आँखों कि मदद से दिल हल्का हो गया, मन की जमीन भीगी और आंधी थम गई एक बार फिर।
बहा देना तरीका है, जरूरत है। घुटन कि परतों में आंसुओं की छेदें ज़रूरी है। इसके नमक से परतों में पड़े छेद बड़े होते जाते हैं और अंततः मन का कमरा साफ हो जाता है।
हाँ, होते हैं कुछ जिद्दी खयाल, कुछ जिद्दी यादें जो जल्दी ही जगह नही छोडती। तो फिर इसके लिए एक बड़ी कोशिश की जरूरत है। समय के साथ वो सुनामी भी आती है जिस से कुछ नहीं बचता, सब धुल जाता है। साफ हो जाता है।
कमरा फिर से सांस लेने लगता है। नये खयाल, नयी यादें फिर से। सिलसिला चलता रहता है।
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