क्यों हैं हम इतने बेसब्र?


क्यों हैं हम इतने बेसब्र?  आईये, वक़्त का पहिया थोड़ा पीछे घूमते हैं, मिलने चलते हैं उस पुराने - बीते हुए समय को जहाँ से हम होकर निकले हैं। इत्मिनान की गलियों में घूमते हैं। जरा सोचिए, इन सबके जिक्र मात्र से हम कितने खुशशक्ल लग रहें हैं। फुर्सत में छिपे परवाह के आलम में। सहज मन की सोहबत में। काम तब भी पूरे होते थे। या यूं कहें कि काम तुरंत पूरा होने की हमे जल्दी नही होती थी। फिर भी सब मुकम्मल होता था।

प्रकृति को ही देख लीजिये, वह जल्दबाजी नही करती, फिर भी सब मुकम्मल है, पूरा है। विशाल पृथ्वी, जिसका नियम ही बदलते जाना है, वह भी सहज गति से काम करती है तो हम उसके सामने कितने सूक्ष्म! हमे इतनी बेसब्री क्यों है ?


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