ये खतरनाक कशमकश


ये कशमकश बेहद खतरनाक लगती है। दबी हुई छाती महसूस होती है। सांस लेने में तकलीफ़, शरीर सामान्य से थोड़ा ज़्यादा गरम और धीरे-धीरे बढ़ता हुआ सिरदर्द। अपनी पल्स मैं बिना स्टेथोस्कोप के सुन पा रही हूं। नहीं, कोरोना नहीं है। मन का भारीपन इतना है की यह लिखते हुए भी मैंने अपने सर को इस मेज पर टिकाकर थोड़ी गहरी सांस लेकर खुद को सामान्य करने की कोशिश की। पर बेकार। पुराना इश्क़, जो अभी भी बासी ना हुआ हो, आपको ऐसे घुटन के फड़फड़ाते अहसास अक्सर देता है। ऐसा मन होता है की काश कोई दवा होती इस मर्ज़ की जिसके दो चम्मच पीते ही सांसें लौट आती, छाती खुल जाती, मन और शरीर का तापमान सामान्य होने लगता। पर जहां इश्क़ भी हो और राहतें भी, ऐसा जहां भला कहां ....... 


Reactions

Post a Comment

0 Comments