ईमानदारी वाक़ई एक अच्छी नीति है। और इसकी शुरुआत खुद से ही होती है। जब तक आप खुद से ईमानदार नहीं रहेंगे, दूसरों से कैसे रह सकते हैं? पता है क्या - इस से आपको अपनी कमियाँ स्वीकार करने में तकलीफ़ नहीं होगी। फिर जब हम स्वीकार कर लेंगे तब उन्हे दूर करनी की कोशिश भी ईमानदारी से करेंगे। इस से बेहतर बनने में मदद ही मिलेगी। वही बेहतर, उत्कृष्ट, श्रेष्ठ (I am the best) इसके बिना तो नहीं हो पाएगा। अगर हुआ भी तो टिकाऊ नहीं होगा, ये तय है। इसलिए खुद से ईमानदार होना सबसे अहम है। इसलिए मूल रूप से आप ईमानदार न हो पाए, किसी भी कारण से, ego, जलन, competition, कुछ भी, तो आप चीज़ों को खुद उलझाते चले जायेंगे। ईमान आपको वहां ले जा सकता है जहाँ की आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
तो कहाँ पहुँचना चाहते हैं? उसी हिसाब से तय करें कौन - सा रास्ता पकड़ना हैं।
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