हालात यूं हैं कि जब फोन पे आपकी आवाज सुनती हूं तो भर जाती हूं और आवाज उसी में दब जाती है फिर आगे क्या बोलूं वो मुश्किल हो जाता है। आपको ना याद करना, बार बार ख़यालों में ना आने देना, पर क्योंकि ऐसा होता नही है तब जब पल भर में आँखें छलछला उठती हैं यूं अचानक कहीं भी, तब खुद को उसी वक़्त सहज करना भी मुश्किल हो जाता है।
हां, जानती हूं यहां तक मैं ही खुद को लेकर आइ हूं। फिर भी कोस लेती हूं, आपको नही, हालातों को। पता नही कब से महत्वाकांशाएँ मेरे लिए इतनी बड़ी हो गई। आपसे मन लगा लेने के बाद भी मेरे अंदर मेरी महत्वाकांशाओं का प्रभुत्व था जो सदैव बना रहा और अपने बीच पनपते रिश्ते को शुरू से ही कमजोर करता रहा। मुझे हमेशा से लगता था मुझे आज़ाद होना है, घर मुझे एक समय के बाद बंदगी लगने लगा था जिसका जिक्र मैं आपसे करती रहती थी। कुछ समय से लगभग हर बात पर 'ना' इतना सुन चुकी थी कि आपसे जिसमे मैं अपना भविष्य देख रही थी, ना नही सुनना चाहती थी।
फिर आप और पिता जी का स्वभाव लगभग एकसा ही है यह जब मुझे समझ में आने लगा तब मैं अपने जीवन में दो पिताओं के प्रति जवाबदेही से चिढ़ने लगी। और इन सब में सरल मन से स्नेह जो आप मुझे दे रहे थे उसकी पूरी कद्र मैंने नही की इसका एहसास अब बखूबी होता है मुझे। और आज जब पूरा विस्तार में सब याद आता है तब दुर्भाग्य किसे कहते हैं, यह समझ आता है।
हाँ, मैंने हमेशा से कहा है कि मैं आपके पास नही आना चाहती थी, आप आये थे। पर समय चलते मुझे आपसे प्यार हो गया था जिसे निभाने से मुझसे चूक हो गई।
हाँ, यह भी मानती हूं कि आपने मुझे कई बार, बार बार माफ़ किया। सब बाजू में रखकर फिर से गले लगाया, हमेशा लगाया ... शायद इसलिए क्योंकि आपको मुझसे ज़्यादा प्यार उस प्यार से है जो आप मुझे करते हैं। पर आज उन भावनाओं को मैंने इतना खरोंचा है कि आपका वो प्यार भी आपकी नाराजगी के सामने चुप हो गया है। और मैं अपनी स्वछंदता का झुनझुना लिए बैठी हूं जिसे पहले ही इतना बजा चुकी हूं कि अब किंकर्तव्यविमूढ़ होगई हूं कि क्या करूँ।
हाँ आपके साथ रहने की उम्मीदें तो अब लगभग क्षीण हो गई हैं, और ऐसा लिखना भी बेहद दुखद है।
मेरा मन बार बार अपने प्यार की यादों को दोहराता है, और मुझे हर रात भिगोता है। हाँ, रातों को जरा आसानी रहती है, कोई आसपास नही होता, कमरे में असफल दिल के लिए मेरा मन आराम से रोता है। कानों को बड़ी दिक्कत आती है, आँसू अपना रास्ता जो बदल लेते हैं। बार बार पोछना पड़ता है, रोने में थोड़ी खलल पड़ जाती है।
कई बार मुझे लगता है कि काश मैं प्रतीक या कृतेश होती, उन्होंने आपसे शादी तो नही की और आपके बेहद करीब भी हैं। थोड़ा हारा हुआ महसूस होता है, आपके रिश्ते को संभाल न सकी और आपसे दोस्ती का रिश्ता मेरे भाग्य में नही था। प्रभु ने तो एक कदम आगे बढ़कर का रिश्ता दिया, पर उसकी कद्र न हो पाई।
अब वक्त बहुत है मेरे पास पुरानी तस्वीरों को देखते रहने के लिए। कई बार लगता है तस्वीरें न ली होती तो ज़्यादा बेहतर था। यादें धुंधली होना शुरू तो करती। कैसी स्थिति है ये! मृत्यु के बाद का अनुभव मैं अभी से ले रही हूं, मेरी नही, रिश्ते की। क्या कुछ है ये सब! नशा था क्या जो पता तो था कि एक दिन सब खत्म कर देगा पर छोटी ख्वाइशों के लिए मैं करते जा रही थी, और अब केवल तकलीफ में छोड़ गया।
आपकी छाती, आपके बाजू जो सिर्फ मेरे हिस्से के हैं, ऐसा मैं मानती आयी, उन्हें कोई और भरेगा अपनी बाहों में, यह दृश्य अभी घटित तो नही हुआ पर आने वाला सच है जो बहुत ज्यादा कड़वा होगा मेरे लिए। 10 जून तो जैसे खुद गया है मेरे जहन में। आखरी बार आप जब मुझे छोड़ने घर आये थे, अपने मुझे गले लगाकर मेरी गर्दन पर प्यार किया था, उस वक़्त मैने kiss की उम्मीद भी नही की थी पर मुझे वो क्षण बेहद भरपूर महसूस हुआ था। आपकी आंखों ने भी हाथ छोड़ते हुए बहुत कुछ कहा था। क्या वो मुलाकात आखरी है! यह मालूम करते ही मेरा मन दहाड़ के रोता है।
उस वक़्त तो आप मुझे जो कहें जैसा कहें मैं सब मान जाने के लिए तैयार हो जाती। पर मेरी ही दुनियां देखने दुनियां घूमने की चाहतें मुझे आपको देखने के आगे चट्टान सी खड़ी हो जाती है। मुझे मेरे घर पर इतना बांध लिया है की मैं अब ऊब गई हूं, आगे यही करते रहना नही चाहती और यही वजह बन गई आपका साथ छोड़ने की।
देखिये न, यूँ तो इतना कुछ कहना होता है आपको, पर आप जब सामने आजाते हो तो सब धूल जाता है।
हाँ बिल्कुल, शरीर की भी अपनी यादें होती हैं, जैसा सदगुरु कहते हैं। पर अभी तो मन का ही पूरा नहीं हुआ।
2 Comments
Didi muje is dard bare kahani kis ke upar liki gayi samaj mein nahi aya par jis kis ke upar ho, behad achhi kahani hai
ReplyDeleteThanks Bhai. I'll share whole story too soon.
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