सुकून यहां रहता है | बागवानी

ज़िन्दगी को मुस्कुराना सिखाती है 

प्रकृति की सोहबत 

gardening for detoxification and releasing stress


बरबस भागती जिंदगी में जब मन सुकून के पल ढूंढने निकलता है तो कई तरह से कोशिश करता है पर शायद ये भूल जाता है की उसके आसपास ही रहने वाली प्रकृति के पास इस मर्ज़ की दवा है। 


जो करते हैं उनसे पूछिए ज़रा, महज शौक नहीं, जीने का अंदाज़ है बागवानी। आनंद का सहज भाव जो तनाव से भारी मन को हल्का कर देने में पूरी तरह से कारगर है। सोने पे सुहागा ऐसे है ये हमारे सिकुड़ते पर्यावरण के लिए भी अच्छी आदत है। 

हमारी चूहा दौड़ वाली ज़िन्दगी ने हमारे पास समय का ऐसा अभाव बना दिया है की हमे हमारे पास हमारे साथ ही रहने वाली प्रकृति से वक़्त ही नहीं। इस कभी  ख़त्म होने वाली दौड़ की देन है तनाव जो हमारे मन को दीमक की तरह खाकर एक दिन खोखला कर देगी। 

तनाव को कर दे छूमंतर

 stress नहीं लेना चाहिए, ये ज़्यादातर बीमारियों की जड़ है, ऐसा ही सुनते रहते हैं ना हम सब। तो इसे दूर कैसे करेंगे? इस सबसे ज़्यादा ढूंढें सवाल का जवाब आपको बागवानी में मिलेगा। दिनभर काम करने के बाद जब हम शारीरिक और मानसिक दोनों तौर पर तक जाते हैं अपने घर का गार्डन, बालकनी या छत पर रखे गमले में गुलाब का लाल फूल देखकर एकदम से हल्का महसूस करते हैं। वहीं बैठकर चाय की चुस्कियां मन को एक सुखद ख़याल में टहला लाती हैं। जितनी जगह है घर में उसी में पौधे लगा लीजिये।  

जड़ों के करीब   

पृथ्वी,अग्नि, जल, आकाश, वायु इन्हीं सब से तो हम बनें हैं। हम क्यों ये बार-बार भूल ही जाते हैं की हमारा अस्तित्व निर्भर है पेड़-पौधों पर। ये हमारे जीवन की जड़ें हैं। इसलिए जब भी हम अपनी जड़ों से दूर होंगे दर्द होगा ही, असहजता आएगी ही, बीमार ही लगेगा। सो करीबी बनाये रखिये प्रकृति से, जड़ों से। तनाव अपने आप दूरी बना लेगा।    

कला भी, औषधि भी  

चाहे कोई  धर्म,जाती, वर्ग, लिंग या उम्र का हो, बागवानी सब कर सकते हैं, ऐसी कला है। मैं तो कहूंगी औषधि है ये हम सबके लिए, बेशकीमती और मुफ्त भी। तनाव से छुटकारा पाते रहेंगे हरदम। 

अकेलपन के रंग-बिरंगे और महकते साथी 

ऐसे लोग जिनके लिए अकेलापन एक बड़ी समस्या है और वे जो नौकरियों से रिटायर्ड हैं, जिनके बच्चे अलग या दुसरे शहरों में रहते हैं, या किसी भी कारण से अकेले रहते हैं, उनके लिए बागवानी उनके खालीपन को भर देने का सरल और खूबसूरत तरीका है। आप सभी प्रकृति को अपना दोस्त बना लीजिये। ये दोस्ती जीवन के हर पड़ाव पर साथ निभाएगी। 

immunity को बनाये मज़बूत 

नए पौधे लगाना, पौधों के गमले बदलना, सूखी पत्तियों को साफ़ करना, अगर कहीं किसी पौधे या पेड़ में कोई दिक्कत दिखाई दे रही है तो उसे सही करना, खड्डा खोदना, खाद बनाना और ना जाने कितने ही तरह के काम होते हैं बागवानी के दौरान। इनसे होने वाली शारीरिक और मानसिक मेहनत आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को निखार देगी। आप अंदर से पहले से ज़्यादा खिला हुआ महसूस करने लगेंगे। ये वातावरण आपको तनावरहित और खुश रखेगा जिससे आप जिंदगी तल्खियों से निपटने में आसानी महसूस करेंगे। 




मेरे 60 वर्षीय पिताजी, जब से मैंने होश संभाला है तब से बागवानी उनके जीने का तरीका रहा है। घर के सभी पेड़ पौधों को वे मुझसे भी ज़्यादा प्यार करते हैं। जब दादा जी गुजर गए तब पिता जी माँ से कह रहे थे "मैंने सभी पेड़-पौधों से कह दिया की तुम्हारे मालिक नहीं रहे।" मेरे पीएचडी का VIVA था। उस सुबह मैं बेहद परेशान थी। तब पिताजी को माँ  से कहते हुए मैंने फिर सुना, "मैंने सभी से (पेड़-पौधों से) कह दिया है की मेरे सारे अच्छे करम उरु (मुझे) लग जाए।" बड़े गर्व से वे घर आने वाले मेहमानों को भी इन पेड़-पौधों से मिलाते हैं और कहते हैं, "इनकी (पेड़-पौधों की ) उम्र तो उरु (मैं) से भी बड़ी है।"  मेरे लिए ये याद करना बेहद भावपूर्ण है। मुझे तब अहसास हुआ की किस तरह पिता जी अपने पेड़-पौधों से बातें भी हैं। बस ऐसे ही दिन का एक बड़ा हिस्सा वे रोज़ "इस रिश्ते" को (बागवानी को) देते हैं। मैं खुद को किसमत का धनी मानती हूं की प्रभु ने मुझे भी उनकी इस हरी-भरी दुनियां का हिस्सा बनाया। 


कोरोना ने प्रकृति की अहमियत पूरी दुनियां को समझा दी। प्रकृति की अवहेलना का नतीजा हम भुगत ही रहे हैं। चलिए  बागवानी की ओर। 
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