खुशलम्हे तो यूं ही मिलते रहते हैं


 ज़िन्दगी की राहों में खुश लम्हे आजु-बाजु से गुजरते रहते हैं। मिलो, तो मुलाकात हो। मिलो, तो। 

एक अच्छे-खासे दिख रहे व्यक्ति से भी अगर पूछें कि, भाई खुश हो? तो भले ही कुछ सोंचकर जवाब दे पर अगर दुःख के बारे में पुछा तो फट से कुछ तो ज़रूर गिना देगा। पर ख़ुशी का सुराग उसे ढूंढना पड़ता है। ऐसा लगता है की जैसे ख़ुशी सबसे दुर्लभ अनुभूति है। ऐसा एहसास है जिसकी तलाश में सब हैं, और जो हमेशा दुसरे के पास ही दिखाई देती है। अच्छा, एक मिनट, किसी और के लिए हम भी तो दुसरे ही तो हैं! और उसकी नज़र में खुश भी। तो क्या खुश हैं हम?

बड़ा दिलचस्प है ये खुश लम्हों की तलाश का मसला। ख़ुशी कहाँ पाएं? कोई इस तलाश से परे नहीं। किसी को काम मिल जाता तो ख़ुशी मिल जाती तो फुर्सत मिल जाती तो ख़ुशी मिल जाती। 

ख़ुशी कहां मिलती है, से ज़्यादा अहम सवाल यह है की ख़ुशी मिलती कैसे है? 

अगर किसी खास शक्ल में ख़ुशी की तलाश ना हो, तो यकीन करिये की दिनभर में जाने कितनी ही बार अनेकों रूपों में ख़ुशी हमारे सामने से गुज़रती रहती है। कभी ये सुनाई दे जाती है, कभी महक बनकर फ़िज़ा बदल देती है, कभी फूल तो कभी फुहारों का रूप ले लेती है। 

और जो अगर यकीन ना हो, तो गौर कीजिएगा। पिछले दिनों क्या अपने किसी पक्षी की आवाज़ अपने घर की बालकनी में नहीं सुनी? या आसमान की ओर  सीना तानकर पतंग को उड़ते नहीं देखा? या अभी इस सर्दी के मौसम में धुप का एक टुकड़ा अचानक आपके हिस्से आया जब आप चाय का अदरकी स्वाद ले थे? गिनते जाइये , ये खुश लम्हें काम नहीं होंगे। फेहरिस्त बढ़ती ही जाएगी। 

वैसे ये कहने वाले भी कई मिलेंगे की ख़ुशी कहां है? ये तो बस पल भर का सुख है। तो ज़रा उनसे पूछियेगा की हमेशा बनी रहे ऐसी ख़ुशी कहां है? कुछ भी हमेशा नहीं बना रहता। हर भाव की तरह ख़ुशी भी हमेशा नहीं रहेगी, तो यूं समझिये की हर तकलीफ के बाद का दौर ख़ुशी का है। 

कोई इच्छा हो, वो पूरी हो जाए तो सुकून मिलता है। भले ही वो सर्दी की सुबह कुछ मिनट और नींद ले पाने की छोटी सी इच्छा ही क्यों न हो। दरअसल, हम हम इत्मीनान के पलों को गिनती में ही नहीं लेते। 

ख़ुशी की कामना के साथ ही जुड़ा होता है आभार का पक्ष। अक्सर हम ये भूल जाते हैं। 

घर लौटते हुए इस अहसास का होना की कोई आपका इंतज़ार कर रहा है, खुश भाव है और आभार की वजह भी। दरवाजा बंद करते हुए इत्मीनान का यह भाव होना की रहने को घर है, भोजन है, रात की नींद नसीब में है और आपकी फिक्र में फ़ोन करके हाल-चाल पूछने वाले कुछ अपने अगर जिंदगी में हैं, तो ख़ुशी क्यों नहीं देख पा रहे हैं हम !! दूसरा और कौनसा पता है ख़ुशी का यार ?? ख़ुशी दूर कहाँ है ?

असल में शुक्रगुज़ार न होना भी नाखुश होने का कारण है। 

किसी के पास एक पल का भी चैन ना हो ऐसा कोई प्रभु ने रचा ही नहीं। 

तलवे में चुभा कांटा दर्द देता है, उस पर लगा हल्दी का लेप आराम है। अब देखने की बात यह है की किसके अनुभव को याद रखा जायेगा, कांटे की चुभन या हल्दी का आराम ..... 

Reactions

Post a Comment

0 Comments