टीन के बजने की आवाज़ जैसे ही आयी, मैंने अपने कमरे की खिड़की खोली तो देखा बाहर बूँदें कत्थक कर रहीं थीं। सर्दी की बारिश का आनंद अलग है। नए साल की नयी उमंग में नयी लहर लेकर आती है। पत्तियों पे जमी धूल धुल जाती है और फुहारों में फूल इठलाने लगते हैं।
गर्मी में जैसे पैर किसी की सुने बगैर ही छत पे ले आते हैं। फिर पूरा तन पूरे मन के साथ बारिश में भीगने लगता है। पर अब सर्दी में तो ऐसा नहीं कर सकते। फिर भी मेरे पैर मुझे रजाई से बाहर तो ले ही आए। मन माना नहीं तो खिड़की का एक पल्ला जरा सा खोला भी, तो ऐसा बर्फीली हवा का झोंका तेजी से मेरे चेहरे से टकराया, मानो कह रहा था, "क्या सिर्फ गर्मियों में ही मिला करोगी?"
बीच-बीच में कड़कती बिजलियां ठंडक में तड़का लगा रहीं थीं। इस सुहाने नज़ारे में एक नज़ारा और भी था। एक गाय अशोक की एक झुकी हुई डाली के नीचे किसी तरह शरण लेती दिखी।
इस बारिश को गर्माहट की भाप में से देखने का अपना अनुभव है। अब गर्माहट भी तो कई तरह की होती हैं। सबसे मशहूर - होठों की गर्माहट, बेहद हसीन - किसी याद की गर्माहट, मेरी पसंदीदा - आलिंगन की गर्माहट, और अगर कुछ ना मिले तो इस रजाई की गर्माहट। सर्दी में अगर रजाई नसीब में है तो आप नसीबदार हैं जनाब। शुष्क मन में ताज़गी भर दे - ये है मावठ।
जो बंद हुई तो मैं बाहर निकली, आँगन में आते ही अचानक पत्तियों से रास्ता बनाती टपक पड़ी मेरे सिर पर बारिश की कुछ मोटी बूँदें। मेरे गर्म शरीर पर फिसल गयी शरारती ठंडक लिए। मैं खिलखिला उठी।
अब मौसम साफ़ हो गया है। हलकी झांकती हुई-सी धुप निकली है। कुछ भीगे हुए परिंदे अपने घोंसले से बाहर आकर पंख फड़फड़ाकर खुद को सुखाने कीकोशिश कर रहे हैं।
बारिश चाहे गर्मी की हो या सर्दी की, भिगोने ही आती है। उसकी प्रवृति भिगोने की ही है। चाहे मन से या तन से भिगोती ज़रूर है।
2 Comments
Bahut sundar
ReplyDeleteAnek dhanyawad :) Fir aiyega, koi aur kahani padhne
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