वो जो बहते बादल, सुलगते सूरज, बलखाती नदियों के साथ है, जो खुद अपने क़दमों का चाँद है, खुद अपने आँखों की रात है, वही रुकी हुई जिंदगियों के हांथों में उम्मीद थमाता है। 2020 में हम कुछ रुक से गए थे पर उस साल की गुफ्तगू से सुना की जीवन चलते रहने का नाम है।
बीता साल महामारी की गठरी लेकर आया था। सभी तरफ अनेकों चिंता और चुनौतियां बिखरी थीं। हर लम्हा इम्तिहान। हमसे बहुत कुछ छीन लिया और कई साड़ी दुश्वारियां दे गया, साथ ही कई सबक, दिखा गया कई दायरे, संतुष्टि के मायने सीखा गया। पहले तो हम कांपे - थर्राये, कई बदहवास दिखे, पर ज़िन्दगी नहीं रुकी।
तमाम खँरोंचों को सहलाती, सपनों की डोर को उम्मीद से गाँठ लगायी और आगे बढ़ 2021 में आ गये हम।
जिंदगी की लय में बुलबुले जैसे पानी के, बनते हैं - टूटते हैं और डूबते भी हैं पानी की सतह पर ही, फिर उभरते है, फिर बहने लगते हैं, वक़्त की मौज पर बहते ही रहते हैं हम।
"कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है, लाख करे पतझड़ कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है"
हम सब अपने समय से जीते हैं। खेल तो चलता रहता है। आप अपनी पारी को भरपूर खेलिए। समय की झंकार सुनाई नहीं देती पर बराबर पहरा देते रहती है। और कई बार तो ख़बरदार भी करती है आने ही अनोखे और कई बार डरावने अंदाज़ में। हम न समझे, ये अलग बात है।
आखिर हम क्या चाहते हैं? ये तय कीजिये।
बाकी तो .............
छोटा अगर कर दें हम जीवन का विस्तार तो आँखों भर आकाश है और बाहों भर संसार।
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