परिवार का गणतंत्र | घर का सहज संविधान

मौलिक अधिकार जो घर के हर सदस्य को मिलने चाहिए 

Why a woman is important in a family?


परिवार का हर सदस्य जहां प्यार, पोषण, परवाह, प्रोत्साहन महसूस करता है, सार्थकता का भाव जहां मिलता है वह सर्वश्रेष्ट जगह है। जानते है क्यों? वजह है - स्त्री की मौजूदगी।  

चाहे हम कहीं भी चले जाएं, पृथ्वी के किसी भी कोने में, कितना भी नयनाभिराम क्यों ना हो वह, पर सहज-सुखद तो आखिर घर पर ही लगता है। क्यों है ऐसा? किसी का घर बड़ा होता है, किसी का छोटा। कोई घर तमाम सुख सुविधाओं से सुसज्जित होता है तो कोई घर इन सबके बिना। छोटा या बड़ा, हर व्यक्ति को अपने  मिलता है। परिवार का हर सदस्य प्यार, पोषण, परवाह, प्रोत्साहन महसूस करता है। सार्थकता का भाव घर पर आता है। जानते है क्यों? कारण है - स्त्री की मौजूदगी।   

कम से कम अपने देश में, क्या हम स्त्री बिना एक परिवार की कल्पना भी कर सकते हैं? जो अगर किसी घर में कोई युवती, प्रौढ़ा या वृद्धा ना हो, केवल एक छोटी बच्ची ही हो तब भी उसका होना ही पूरे परिवार  संगठित रख लेता है। आखिर ऐसी क्या बात ही स्त्रीत्व में? एक स्त्री अपने परिवार में जो भूमिका अदा करती है, अगर हम उस पर गौर करेंगे तो नज़र आएगी उसकी गणतांत्रिक कार्यशैली और प्रवृति। क्यों! मुस्कुरा गए ना? 


girl child is center of attraction in the family


स्त्री अपने प्राकृतिक स्वाभाव से ही लोकतांत्रिक होती है। हम जिस संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की बात करते हैं उसे तो स्त्रियां अपने घर-परिवार में बड़ी सहजता से बखूबी साकार करती आयी हैं। भले ही 'संविधान', 'लोकतंत्र', 'गणतंत्र' जैसे भारी-भरकम शब्दों की किताबिय परिभाषाएं ये साधारण स्त्रियां ना जानती हों, पर अपने मूल स्वभाव में इन्होने उन शब्दों मायनों को बेहद सरल और सहज तरीके से गुथा हुआ है। 

अगर हमे गणतंत्र और संविधान के बारे में जानना है, उसकी झलक अपने घर में मिलेगी। हमारे परिवार की महिलाओं ने हमारे घरों में संविधान के प्रावधानों को बड़े ही सरल और सुंदर तरह से लागू किया हुआ है।  और यही हमारे घर को रहने की सबसे बेहतरीन जगह बनाता है। 

घर का सहज संविधान   

स्त्री ही है जिसके चलते मौलिक अधिकार सुरक्षित हैं घर के 

बराबर का हक़ (Right to Equality)

देश का संविधान हमे समानता का अधिकार देता है और घर में ये हक़ की सुरक्षा करती है स्त्री। चाहे किसी भी उम्र का सदस्य हो, स्त्री  ज़रूरतों का बराबर ख़याल रखती है। कोई निर्णय अगर एक बच्चे के लिए लिया जा रहा हो तो दादी जी कहती है की एक बार उससे भी तो पूछ लो। 

अगर कमाई के आधार पर ही भेदभाव होने लगे तो केवल कमाने वाले की ही चलेगी, अन्य सदस्य उपेक्षित महसूस करेंगे। स्त्री जानती है की लिंग,  उम्र,आया आदि से परे रहकर सभी के लिए समान भाव कितना ज़रूरी है।  

हमें चाहिए आज़ादी का माहौल (Right to Freedom)

तमाम अनुसाशनों के बीच देश का संविधान हमे स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यही स्वतंत्रता घर पर हमे स्त्री दिलाती है। जो स्त्री न हो तो बच्चों और बुजुर्गों को तेज़ आवाज़ से ही चुप करा दिया जाएगा। वह माँ, दादी ही है जो एक नन्हे से बच्चे की बातें भी पूरे ध्यान से सुनती है। घर के बुजुर्गों  बड़बड़ाहट भरी आवाज़ से भी धीरज से सुन लेती है। बड़ों का चिड़चिड़ापन झेल लेती है। दादी, माँ, दीदी, भाभी  रिश्तों से ही तो हम अपने दिल की बात खुलकर रख पाते हैं, क्यूंकि वो ना तो गुस्सा होगी और ना ही हंसी में उदा देगी। जो अगर हमे अपने ही घर में अभिव्यक्ति आज़ादी ना मिलती तो कैसा जीवन होता!  

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शोषित न होने पाए  (Right Against Exploitation)

देश का संविधान हमे शोषण के खिलाफ अधिकार देता है। घर पे इस अधिकार को हमारे परिवार की स्त्रियां ही तो सुरक्षित रखतीं हैं। वह ध्यान रखती है की किसी भी सदस्य को कोई ज़्यादा परेशान तो नहीं रहा, कोई किसी से ज़रुरत से ज़्यादा काम तो नहीं ले रहा। बड़ा भाई छोटे भाई पर ज़बरदस्ती ढौंस तो नहीं जमा रहा। अरे वह तो घर पर काम कर रही घरेलू सहायिका के लिए मालकिन नहीं बल्कि दीदी या भाभी होती है और कभी कभी तो सहेली ही बन जाती है। सफाई कर्मचारियों  ध्यान रखती है की कोई उन्हें बदतमीज़ी से बात न करे। उनके सुख-दुःख, बीमारी, कोई पैसों की तंगी में भी पूरा ख्याल रखती है। तीज-त्यौहार पर मिठाइयां और उपहार देना कभी नहीं भूलती। उन्हें जब कभी कोई सहायता की ज़रुरत हो तो वह इसका पूरा ध्यसन रखती है। वह हम सभी को हमेशा प्रोत्साहित करती रहती है। 

सुने जाने का अधिकार (Right to be heard) 

देश का संविधान हमे अधिकारों का हनन होने पर न्यायालय जाने का हक़ देता है। वैसे ही घरों में अगर दो बच्चों के बीच झागड़ा हो जाये, या किसी के बीच कोई विवाद हो जाए तो बात पहुंचती है दादी या माँ के पास। यूं तो पिता जी की किसी बात का बुरा लगा हो तब भी इसकी शिकायत भी माँ से ही होती है। अच्छा लगता है न तब जब माँ कह देती है की तेरे पापा से मैं बात करुँगी। सुने जाने का ये हक़, ये भरोसा की अन्याय नहीं होगा,घर में स्त्री के होने से संभव है।  


गणतंत्र दिवस के इस अवसर पर आइये, ये संकल्प  लें की जैसे हमारे घरों में परिवार की महिलाएं हम सभी के हितों-अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करतीं हैं वैसे ही हम हमारे देशवासियों के लिए करेंगे ताकि हमारा देश में भी हमे हमारे घर की तरह सहज, सुकून, सुरक्षा महसूस हो।  

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