Meditation कोई एक बार करके उठ जाने वाली क्रिया नहीं है। हम इसे कभी भी कर सकते हैं, कई तरह से सकते हैं।बल्कि यूं कहें तो ग़लत नही होगा की हर काम करते हुए हम meditation कर सकते हैं, और करना भी चाहिए। उन्ही में से एक है mindful walking.
शहर के कोलाहल से दूर, प्रकृति की आवाज़ों में, ताज़ी हवाओं में, अकेले टहलते हुए हवा में हिलते पत्तों को सुनना, चिड़िया को एक डाल से दूसरी डाल पे फुदकते हुए देखना मन को कितना सुकून देता है ना? बस यही है mindful walking. Mindful का मतलब, मन की मौजूदगी। जब हमारा मन कहीं और नहीं बल्कि हमारे साथ रहेगा तो इसका असर बहुत से आयामों पर पड़ता है।
एक बौद्ध विचारक कहते हैं, "इस तरह चलिए जैसे की आप हर कदम के साथ इस धरती को छू रहे हों।"
तो जब चलें, केवल चलें। चलना भर ही कितना खूबसूरत और आनंद देने वाला अनुभव हो सकता है, यही mindful walking से महसूस किया जा सकता है।
Mindful Walking कैसे करें?
सबसे पहले अपने मन की अंगुली पकड़कर अपने पास ले आइये। अभी वह विचारों में, भावनाओं और घटनाओं में टाफरी मार रहा है। अब अपने कदम को अपनी साँसों को महसूस कीजिये। अमूमन जब हम पैदल चलते हैं तो हमे कहीं पहुँचने की जल्दी रहती है इसलिए हम अपने आसपास हो रही चीज़ों को, उनकी बारीकियों को अपनी पूरी क्षमता देख पाते। किसी भीनी सी महक पे हमारा ध्यान ही नहीं जाता। अब अगर आपको लगता है की यह आदत ठीक नहीं तो बस यही ठीक करनी है।
हमारा मन यादों और विचारों का एक भंडारगृह है। स्वाभाविक है की हम इन्हे इतनी सहजता से बार-बार पनपने से नहीं रोक सकते। पर इसे कम ज़रूर किया जा सकता है। मन हल्का रखने में अच्छी मदद मिलेगी। चीज़ों के प्रति समझ मजबूत बनेगी। बारीकी से विचारने की क्षमता बनेगी। ना केवल दुसरे बल्कि हम भी हमारे स्वभाव में ठहराव महसूस करेंगे। निश्चित ही तनाव कम होगा। किसी लम्बी पीड़ा या गहरे घाव से भी रहत मिल सकेगी। भावनात्मक और मानसिक स्वस्थ्य बेहतर होगा। इस से दोनों प्रोफेशनल और निजी जिंदगियां सुकून भरी लगने लगेंगी। लगातार अभ्यास करने पर इसके बहुयामी महसूस होने लगेंगे।
कब करें?
कभी भी। क्यों की किसी भी चीज़ की ज़रुरत नहीं है इसमें। खासकर की मोबाइल बिलकुल नहीं। कपडे-जूते आरामदायक पहनें। सामान्य से धीमा चलिए। प्रकृति को देख मुस्कुराइए।
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