दिल की खिड़कियों को खोल दीजिए तस्वीर थेरेपी से
नज़ारों की खुशबुओं से मन के मौसम महकने लगेंगे,
इत्मीनान की बाहें पकड़, कैमरा उठा के बहारों से मिलने तो निकलिए
जब कभी हम नाखुश सा महसूस करते हैं तब खुद को बाहर की दुनियां से कटा हुआ पाते हैं। पूरा-पूरा दिन बेरंग सा गुजर जाता है बदहवासी घेर लेती है और नकारात्मक विचारों का तांता लग जाता है। इस कोप भवन से निकलने के कई जरिये हैं। कोई ध्यान करता है, कोई योग से ध्यान लगाता है। विभिन्न तरीकों से मन को बहलाने की कोशिशें होती हैं। इन्ही में से एक है फोटोग्राफी। मैं उस फोटोग्राफी की बात बिलकुल नही कर रही जो हम-आप अमूमन सोशल मीडिया के लिए करते हैं। मैं यहां उस फोटोग्राफी की बात कर रही हूं जब हम उन अनुभवों को तस्वीरों की शक्ल में सहेज लेते हैं। उस खुश लम्हे को तस्वीर में रोक लेते हैं, अपने पास। ये तस्वीरें खुद की ख़ुशी के लिए ली जाती हैं ना की सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए खींचनी है। mindful walking की तरह हम इसे mindful photography भी कह सकते हैं।
देखा जाए तो ये introspection कही एक रूप है। ये मौन हो चुकी संभावनाओं में प्राण फूंकने जैसा है। तो ऐसी फोटोग्राफी कैसे की जाए और ये कैसे असरदार है, चलिए बताती हूं।
तस्वीर थेरेपी कुछ ऐसे है -
एकाग्रता लाना ज़रा मुश्किल काम है और फोटोग्राफी इसमें मदद करती है क्यूंकि आपको कोई नाज़राअपनी तरफ खींचता है, आप रुक जाते हैं, आपका ध्यान उस दिशा में इकठ्ठा होने लगता है और जब ऐसा होता है तो आप अपनी सांसों को भी लगते हैं। और इस तरह ये एकाग्रता हमे दुसरे सभी कामों में भी ध्यान लगाने में मदद करती है।
कसैली यादें मन भारी बनाये रखती हैं। ऐसे में जब हम शांत चित्त से कैमरे में तस्वीरें लेते हैं तो हमे किसी भी असहज विचारों से दूर रहने का समय मिलता है। और यही आदत हमे धीमे- रहने में मदद करती है।
दस में से कोई एक तस्वीर भी हमारे मनपसंद की आ जाये तो बड़ा अच्छा लगता है। हम इन्ही लम्हों की तो बात करते हैं जब हम ये कहते हैं की जिंदगी में छोटी-छोटी खुशियां नीरस मन में शरबत घोल देने का काम करती है, उसे खुशगवार रखती है।
Therapeutic Photography कैसे की जाए?
बड़े आराम से, हर लम्हें में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए, धीरे-धीरे घुमते हुए, हर दिशा को निहारना। कई ऐसी चीज़ें हैं जो हमारा ध्याना अनायास ही खींच लेती हैं जैसे चट्टान पे खिला कोई बैंगनी फूल, रट हुए बच्चे का अचानक मुस्कुरा देना, सुबह की रेत पर पड़े पक्षी के पैरों के निशां। ये तमाम चीज़ें, भाव नज़ारे आदि हमारे आसपास ही मौजूद हैं पर हम खुद जहां हैं वहां मौजूद नहीं होते, इसी वजह से इन खुशलमहों से महरूम ही रहते हैं।
पर अब जब आप गौर कर रहे हैं तो इनमे से जो आँखों को भा जाए उसे कुछ देर जीयें। सुखद है ना? कितना आसान और सस्ता तरीका है भारी हुए मन को हल्का कर दे ऐसा। बस इसी लम्हे को आँखों से जी भर जी लेने के बाद तस्वीर लेकर इसे हमेशा के लिए अपना बना लें।
अगर कोई फूल को देख रहे हैं तो उसके करीब जाएं। हमेशा जैसे नहीं बल्कि एक अलग ही नज़रिये से उसे और अपने मोबाइल या कैमरे में उसे सुरक्षित कर लें। किसी ख़ास जगह पर पड़ रही रौशनी अगर आपका ध्यान खींच रही है तो उसे भी गौर से देखें और फिर खींच लें उसे भी अपने कैमरे में। कई तरह के एंगल, फ्रेम, रंग के साथ अपनी रचनात्मकता को नए आयाम दे सकते हैं।
हमारा मन जो अनेक विचारों-यादों के अम्बार से लदा रहने से जिंदगी की इन छोटी और साधारण पर मन खुशनुमा कर देने वाली चीज़ों पर ध्यान नहीं देता है, ये मन फोटोग्राफी के ज़रिये अब हर बारीकी पर गौर करेगा।
सुबह का वक़्त सबसे अच्छा है थेराप्यूटिक फोटोग्राफी के लिए। दिन के इस पहर में शांति सबसे ज़्यादा होती है। इत्मीनान को बाहों में ले निकल पड़ें उस वक़्त के साथ जिसे आप अपना बनाने निकले हैं।
Photography करते वक़्त क्या नहीं किया जाए -
तस्वीर थेरेपी तभी कारगर है जब आप दोसतों या किसी समूह में ना जाकर हो सके तो अकेले ही निकलें। इस से फोटोग्राफी की थेरेपी का पूरा लाभ और मज़ा ले पाएंगे। एक ही जगह पर multiple clicks लेने से बचें। इत्मीनान से ठहरें और आँखों को पीने दें, आपका पसंदीदा capture मिल जायेगा। विशेष ध्यान रखने की बात, किसी इजाज़त के बिना उनकी तस्वीर कतई ना लें।
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