प्यार या मिठास, बात तो एक ही है
हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे खुश रहने की ज़रूरत महसूस ना होती हो। हां, ये बिलकुल अलग बात है की सबकी ख़ुशी की अपनी ही एक विशेष परिभाषा है। खुश मन एक बहुत ही basic चीज़ है। भले ही ये अब हमारी जरूरत बन गया है पर ये एक fundamental element है हमरे existence का। एक नन्हा बच्चा पहले खुश रहना ही जानता है। दुख, ईर्षा, नाराज़गी, ego ...... ये तो दुनियां उसे सिखाती है। इसलिए प्रथम भाव ही खुश भाव है। मतलब, सबसे पहले कुछ महसूस होता है वो है ख़ुशी। और यही इस संसार का मूल है। हमारी जिंदगी की शुरुआत इसी से होती है और देखा जाए तो इसी पर खत्म भी।
ख़ुशी हमे कई तरीकों से महसूस होती है। जहां रस है, मिठास है, वहीं हम ख़ुशी का अनुभव भी करते हैं। हमारी जिंदगी में मिठास ही तो ख़ुशी का पर्याय है। एक और पर्याय याद आता है, मधुर- वह जो शीतल है। चाँद वो जरिया है जिस से हमें रातें मीठी और सुकून भरी महसूस होती हैं। रात की बाहों में सोये जब सुबह आँखें खोलते हैं तो खुले आकाश के नीचे मधुरता से भरा अनुभव करते हैं। आपको पता है, चन्द्रमा के एक मास का नाम ही मधुमास है।
जो मधुर है, वह खुश, है, शीतल है, मीठा है। वह इंसान दिव्या नज़र आता है। ख़ुशी ही तो कृष्ण का पर्याय है। रस भी इसी को कहते हैं, ब्रह्मा भी यही है। जहां प्यार है वही इसका पता है। यहां स्वार्थ, अहंकार, ego नहीं बसते। दूसरे किसी से expectation नहीं करते। बल्कि किसी के लिए कुछ करने का मन ज़रूर होता है। ये सब भाव साफ मन में ही रह सकती हैं। 'बुद्धिजीवी' तो आसानी से मीठा हो ही नहीं सकता।
शहद को पचाना नहीं पड़ता, पहले ही मधुमक्खियां उसे पचा चुकी होतीं हैं।
जहां मीठा नहीं, वहां आनंद नहीं, वहां प्रभु कैसे आ सकते हैं। वहां न भक्ति हो सकती है और समर्पण तो हो ही नहीं सकता। इसके लिए प्यार करना सीखना होगा।
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