ससंकारों का सूरज दिख ही जाता है

एक चावल के दाने की जांच से पूरी हांड़ी का सच जान लेने जैसी बात है यह 

सौम्य-सभ्य आचरण आकर्षक होता है

Indians eating food in train coaches happily

कुछ साल पहले की बात है। एक मध्यवय स्त्री को ट्रैन में भोजन करते देखा था। छोटी-सी चमकदार बांस की डलिया में से उन्होंने सबसे पहले एक दोहरी तह में सिला कपड़ा निकालकर बर्थ पर बिछाया, फिर बारी-बारी भोजन के डिब्बे सजाए। सबसे आखिर में निकाली प्लेट और साफ़-सुथरे कपडे के नैपकिन में लिपटा चम्मच। नैपकिन को गोद में बिछाकर वे सुकून से डिब्बों में रखे भोजन को प्लेट में परोसकर खाने लगीं। 

इस पूरे नज़ारे के हर पल में सुकून था, अपने साथ लाये भोजन के रखे, परोसे और करने में एक व्यवस्था थी, जो उनके व्यक्तित्व की हर खूबी को उजागर कर रही थी। 

कहते हैं ना की बाहरी इत्मीनान, अंदर की शान्ति को दर्शाता है। ट्रेन के सफर के लिए की गई उनकी तैयारी, उसमे सुघड़ता और अपने लिए हर तरह के स्वाद का इंतज़ाम, जैसे अचार, सलाद, चटनी इस बात का घोतक थे की उनके लिए भोजन की सम्पूर्णता कितनी आवश्यक है। 

वे अच्छी मेहमाननवाज़ होंगी, पाककला में पारंगत और अच्छी तरह के बर्तनों-उपकरणों की संग्रहकर्ता और जानकार। व्यवहार की कितनी छोटी सी झलक कितनी सारी बातें बता जाती है। अपने आप की, अपने माहौल की और अपनी परवरिश की झलक प्रस्तुत कर देते हैं ऐसे लोग। उनके कार्य सहजता यह भी बता देता है की यह कभी-कभार की बात नहीं है और ना ही आडंबर है। सौम्य, सभ्य आचरण आकर्षक ही होता है।      
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