ना भूलेंगे, ना माफ़ करेंगे
"ओ वतना वे, मेरे वतना वे, तेरा मेरा प्यार निराला था,
कुर्बान हुआ तेरी अस्मत पे, मैं कितना नसीबों वाला था"
बेटा, पति, पिता, भाई .. ये रिश्ते चले गए तो वापस नहीं आते। हम आप इनका दर्द महसूस कर ही नहीं सकते। इसलिए नहीं क्यूंकि हमे करना नहीं आता, इसलिए क्यूंकि इस दर्द की जो तीव्रता उनके परिवार वाले कर रहे हैं और करते रहेंगे दर्द की उस गहराही का हम पता नहीं लगा सकते। ये वो जख्म हैं जो हमेशा हरे रहेंगे। अंदाज़ा यूँ लगाइये, की जब "जो लौट के घर ना आएं" या "तेरी मिटटी" गाने बजते हैं तो हम अपने आंसुओं को संभाल नहीं पाते, हमारा गला भर ही आता है, तो ये तो वे परिवार हैं जिनके लिए वो महज गाना नहीं पूरी हकीकत है।
आज Valentine's Day पर क्या हम आप कुछ देर के लिए सोंच पाएंगे की शहीद की पत्नियां और मंगेतर कैसा महसूस कर रही होंगी?
शहीद की दुल्हन कहलाना बेहद गर्व की बात है। आज ऐसा ख्याल आता है की जिसे पति मान सकूं, कोई अब तक तो मिला नहीं, अब यूं ही किसी के साथ बंध जाने से कहीं ज़्यादा बेहतर है की जो शहीद हुए हैं उन में से एक शहीद को पति के रूप में स्वीकार करूं। ये सोंचने भर से जो अहसास हो रहा है वो भी शब्दों में बयां नहीं किया जा रहा। हालांकि ये वीर रस है, शहीद की हमसफ़र होना सबके नसीब में थोड़ी होता है। यह भी एक तरह का सौभाग्य है।
"ओ हीर मेरी तू हंसती रहे
तेरी आँख घड़ी भर नम ना हो
मैं मरता था जिस मुखड़े पे
कभी उसका उजाला कम ना हो "
गहरा दुख होता है जब मैं "भारत तेरे टुकड़े होंगे" जैसी मानसिकता को देखती हूं, की यार इनके लिए हमारे वीरों ने बाजी लगा दी! उदाहरण सामने ही है ना, जब Gully boy फिल्म के गाने "तू नंगा ही तो आया है क्या घंटा लेकर जाएगा" को कई सारे अवार्ड्स से सम्मानित किया गया और देशभक्ति फिल्म Kesari के गाने "तेरी मिट्टी" को जूरी कोई तवज़्ज़ो नही देती।
छोटे कपडे, फर्राटा अंग्रेजी बोलना (इसका पूरा ध्यान रखते हुए की चाहे किसी को समझ आए या ना आए बस स्टाइलिश लगनी चाहिए, और अगर ना आए तो ज़्यादा अच्छा), हिंदी में भी बोलते हैं, पर गलियां, गंदी गलियां (जितनी गंदी गाली उतना ज़्यादा 'स्वैग'), open relationship, freedom of speech के नाम से freedom of sex .... ये "अभिव्यक्ति की आज़ादी" (जिसका "टुकड़े गैंग" मानसिकता वाले अकसर हवाला देते हैं ) है। आतंकवादियों की शोक सभा करते हैं, बरसी मनाते हैं।
यार वाक़ई बहुत दुख होता है इनको आज़ाद भारत की कीमत का कोई अंदाज़ा नहीं है। होगा भी कैसे? इनकी भौतिकवादी परवरिश का कमाल जो है ये। ये सोंच सिर्फ अपना हित साधना जानती है। इन्हे लगता है हमारे पास जितना ज़्यादा होगा हम उतने ही खुश रहेंगे पर अफ़सोस की ऐसा होता नहीं ना। जब हासिल करने, दूसरों का भी छीन लेने के बाद भी जब ख़ुशी दूर - दूर तक दिखाई नहीं देती तब ये Drugs की शरण लेते हैं। और फिर NCB आती है इनके पास इनकी आरती उतारने। खैर, ये लोग इसका भी कोई ना कोई 'logic' आपको दे ही देंगे। इनके पास है "अभिव्यक्ति की आज़ादी"।
इन तमाम चीज़ों के बावजूद, जैसे की सूरज जब आता है तब आप-मैं, पशु-पक्षी, नदी, पहाड़, आबोहवा, सबको वह रोशन कर देता है, वैसे ही ये भारतमाता के वीर जब अंगारों पे जिस्म जलाते हैं तो हम सबको आज़ाद सांसें लेने का मौका मिलता है, त्यौहार मनाने का अवसर मिलता है, जैसे आज भी वैलेंटाइन डे मना ही रहे हैं।
क्या इसे ऐसे कह सकते हैं, की, वैलेंटाइन डे हमारे सैनिक रोज़ मनाते हैं क्यूंकि उनका महबूब उनका वतन है उनकी नसों बहता है। वैसे ये बात उनकी पत्नी, उनकी गर्लफ्रेंड जानती भी हैं की उनका स्थान दूसरा है, एक सैनिक अपना पहला प्यार, पहली मोहब्बत अपने फ़र्ज़ को, अपने देश की सरजमीं को मानता है।
यूं ही नहीं हमारा लाड़ला तिरंगा फहराता है, हमारे शहीद ने अपनी सांसों को ये जिम्मेदारी सौंपी है।
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