अपनी प्रकृति के अनुरूप जिएं
हम कभी दुखी नहीं होंगे
क्या कभी किसी गिलहरी को गंभीर रूप में देखा है? क्या कभी किसी हिरण को चलते हुए देखा है? क्यूंकि ये इनका स्वाभाव ही नहीं है। कभी किसी गाय की आँख देखोगे तो उसकी आँख में आपको करुणा ही दिखेगी। इसलिए उसे माँ की संज्ञा दी है।
प्रकृति का सबसे खूबसूरत तोहफा जिसे हम जंगल कहते हैं, एक भावपूर्ण महाकाव्य ही तो है। नदी नीचे की तरफ बहती है। उसके रास्ते में अगर पहाड़ आजाये तो वह अपना रास्ता बदल लेती है। अपने आसपास जो कुछ भी होता है उसके पीछे कोई ना कोई बात ज़रूर होती है।
ऐसा नहीं लगता की हम अपने मूल स्वाभाव से दूर नहीं हुए बल्कि, उसे पूरा ही त्याग दिया? जितना पाना चाहते हैं, वो हासिल कर भी रहे हैं, जो नहीं मिल रहा और जो इन तमाम चीज़ों से मिल ही जाना था वो नहीं मिला - ख़ुशी।
फिर काहे कर रहे हैं ऐसा? दुबारा नहीं मिलेगी ये वो जिंदगी है। पता हम सबको है लेकिन जद्दोजहद में ध्यान नहीं रहता ये सब। जनाब मन को भरकर जियेंगे तो मन से नही जी पाएंगे। जल्दबाज़ी को जीना है या ज़िन्दगी को। फर्क है यार, जल्दबाज़ी में साँसें ले सकते हैं, ज़िन्दगी तो फुर्सत की दोस्त है।
थोड़ा है, थोड़े की ज़रुरत है। ज़िन्दगी फिर भी यहाँ खूबसूरत है।
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