अहम का अड्डा तो नहीं है आपकी बुद्धि?
व्यक्ति चाहे तो भी घमंड से अलग नहीं रह पाता। उसकी 'बुद्धि' नहीं होने देती। बुद्धिमान होना एक तरह का नशा ही है। कभी उम्र, कभी पैसा, कभी रुतबा, कभी औहदा, कभी ज्ञान का नशा रहता है। अगर वो किसी एक नशे से अलग होना भी चाहे तो कोई दूसरा उसे घेर लेता है। बुद्धि का काम घेरे का फेरा लगाना ही है। इस व्यूह रचना को भेद पाना मुश्किल है।
बुद्धि का मतलब - सूचनाओं या जानकारियों का पुलिंदा। कंप्यूटर भी यही है। हम कितना कुछ इसमें भरते रहते हैं। यही सब हमे पकड़ लेता है। इसका जाल हमारे चारे तरफ बन जाता है।
बुद्धिमान व्यक्ति सामने वाले की बात को सहज मान ले, ऐसा हो नहीं सकता। और सामने वाले के साथ भी ऐसा ही है। फिर हम आपस में जो कुछ करते हैं या कहते हैं, उसका क्या मतलब रह जाता है? हम आपस में किसी से जुड़े हुए हैं ही नहीं। जब सब कुछ ऐसे ही चलता है तब कुछ अच्छा बदलाव कैसे आएगा?
बदलाव तो आता है। सभी की ज़िन्दगी में आता है। इसे भाग्य कह देते हैं या कभी संयोग या इच्छा। जिंदगी में कुछ न कुछ तो ऐसे बदलता है की कई बार अनुभव झूठे साबित हो जाते हैं, कई बार अकक्ल घास चरने चली जाती है।
चीज़ें यूँ ही चलती रहती हैं। क्या ऐसा चलते रहना आपको चलेगा? हाँ, तो फिर ठीक ही है, चल ही रहा है, चलिए इसे ही। नहीं, तो क्या किया जाए? बुद्धि के वजन को हल्का कीजिये। क्यूंकि भारी होते ही हमारा मन भी थकने लगता है। वाकई, इतना ही करना है।
सब कुछ ना ठूसिये दिमाग में। संतुलित खुराक ही सही रहेगी उसके लिए। हल्केपन की गुंजाइश बनी रहेगी इस से। मन और बाहर दोनों का वातावरण भी हल्का रहेगा। साँसें अच्छी आएंगी।
2 Comments
Wow wonderful kya likha hai behtareen behtareen ....keep rock on kahani gram with ur superb eye opening writings .
ReplyDeleteThank you so much. Many thanks for your warm wishes. Mean a lot. Keep visiting :)
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