आइये, अहसासों को सुनते हैं

ये भाव क्या कहता है !

भाव अगर खूबसूरत है तो हमारा व्यक्तित्व भी मीठा ही होगा। 



हमारे भाव हमें बनाते हैं। भाव बहुत कुछ तय करते हैं। ये जीवन की संजीवनी है। अच्छे अनुभव अच्छे भाव पैदा करते हैं। और जब तक ऐसा बना रहता है तब तक सब अच्छा है, जायकेदार है। कुछ मन के विपरीत भी होता है तो वह हमें बेचैन नहीं कर पाता। मन के आंगन में सहज, शांत हवा बहती है, कोमलता बनी रहती है। 
कोई भी खयाल सबसे पहले हमारे मन में ही आता है। ये हमारे शरीर में एक अपनी ही तरह की हलचल पैदा करता है। बाहर हम इसे अपने चेहरे पर आए बदलाव में देख सकते हैं। भाव अगर खूबसूरत है तो हमारा व्यक्तित्व भी मीठा ही होगा। 

कोई भी धर्म, योग, या साधना का पहला काम भावभूमि तैयार करना ही है। यानी हमारे मन के बिखरे हुए आंगन को  साफ़ कर उसमें सहज भाव लगाना। प्यार, दया, गुस्सा, नफरत, सब मन के भाव से जुडे हैं। 

हमारे ज़ज्बात मन में ही जन्म लेते हैं। यही हमें ज़िन्दगी भर टूटने से बचाते हैं। इसी से हमारे मन को अभिव्यक्ति मिलती है। इसमें रस है, साहस है, उम्मीद है, सब्र है, विश्वास है, झूझने की ताकत है। इसलिए मन की भाषा सीखनी ज़रूरी है। ये खामोशियां कह रही हैं आपसे। 

जैसे ही आप समझने लगेंगे मन के तार जुड़ने लगेंगे। चेहरे पे क्या लिखा है? सलवटों ने क्या कहा है? ठहरे हुए पानी की छेड़ने पर गहराइयां क्या गुनगुनाती हैं? वक़्त की लहरें क्या कहती हैं? सब, सब समझने लगेंगे। मुश्किल बिलकुल नहीं है, किया जा सके, ऐसा ही है। चलिए, सिलसिला शुरू करते हैं, सुनने-समझने का।  
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