जब प्यार किसी से होता है
सम्मानजनक स्वतंत्रता और पूरा हो जाने का भाव ही प्यार है। उमीदें बांधती हैं। प्यार तो मोक्ष है।
ये व्यवहार का नाम है। फिर खुद का कुछ भी इतना मायने नहीं रखता। क्यूंकि सारा ध्यान हमने 'उनपर' लगा जो दिया होता है। जो 'साधारण' प्यार करते हैं, वे उमीदें रखते हैं। और जो केवल प्यार करते हैं, अपना काम करते हैं, और 'उनको' उनका काम करने देते हैं।
उनके साथ सालों की घुटन अचानक गायब महसूस होने लगती है। मन के आँगन में गुलाब खिला रहता है। हम खुद को उंडेल देते हैं। और ये सहज होता है, बिना किसी विचार के, बिना किसी कोशिश के। जो विचार करने लगते हैं वे पहले गणित लगाते हैं। ज़रूरतों के अनुसार गुण-दोष का आंकलन भी करते हैं। अगर पक्ष में आया तो पाने की कोशिश चालू।
प्यार में ऐसा नहीं होता। वहां खुद की फुर्सत कहां? वहां तो बस 'प्रिय' होता है। जिस पर खुद लुटाना होता है। और इस चर्चा भी नहीं होती किसी से। ये शांत क्रिया है। बस धुन में की जाती है। इस बात पे भी गौर नहीं किया जाता की 'प्रिय' को भी इसका पता है या नहीं।
प्यार अंदर की बात है। इसमें समय लगता है। जब ये अंदर तक ना छूए, स्वाद नहीं आता। यहां दिमाग एक घातक हथियार की तरह काम करता है। उसका अपमान खुद के अपमान से अलग लगे इसका मतलब दोनों ने अलग-अलग जीना शुरू कर दिया।
ये वही समझ सकता है जो ये जान गया है की प्यार को कभी समझा नही जा सकता।
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