हर रात शिव के साथ
आपको देख कर शरारत का भाव तो आता नहीं पर मस्ती पूरी करते हैं आप। जिस रूप-लावण्य की कल्पना भी नहीं हो सकती वो है आपके पास। ये जो खूबसूरती ओढ़ी हुई है अपने, ये हमे इस ग्रह पर मिलती नहीं। जिसने आपको देख लिया हो, महसूस कर लिया हो, वो अब किसी कमतर से कैसे संतोष करे भला? ये भी सही है, शिव पाने के लिया शक्ति ही होना होगा। जब कुछ असाधारण, असामान्य चाहिए तो पात्रता भी वैसी ही होनी चाहिए।
आपके अलावा कोई दूसरा पुरुष दिखता ही नहीं। ऐसे defective pieces क्यों बनाए प्रभु? अपने उन्हें शरीर तो दिया पर आत्मा पुरुष की नही आ पायी शायद। इन लोगों ने रौब ले लिया, अधिकार ले लिए पर सौम्यता आप सी नहीं ला पाए। फिर कैसे मानें की वे पुरुष हैं? आप सा ग्रहस्त, आप सा बैरागी, ये होना मुमकिन ही नहीं। इसलिए इस पूरी सृष्टि में सिर्फ एक पुरुष है, आप, बाकि सब स्त्री।
यूं सब कुछ तो मुकम्मल है पर फरियादें भी कम नहीं। हम सब अपनी-अपनी applications लेकर आपके पास आ जाते हैं। पता है कुछ, बवंडर मचा हुआ है यहां नीचे और आप हैं की यूं ध्यान लगाए बैठे हैं। प्रभु तबाही भीषण है, मन की, हृदय की कोमलता की, भाव की, संवेदना की, उमीदों की, सम्मान की, प्यार की। कितनी ज़रुरत है यहां सफाई की। और ये काम तो आपके जिम्मे है, आइए ना।
मन की गंदगी इस कदर हावी है की कोरोना तक के आजाने से कोई विशेष फर्क न पड़ा। लोग अब भी उलझे हुए ही हैं।ये सब ठीक होगा क्या प्रभु? इसकी गुंजाइश रखूं? प्यार, परवाह - क्या ज़्यादा मांग लिया? क्या ऐसी उम्मीद जायज नहीं? ये दोनों एक साथ नहीं मिल सकते? उम्मीद रखूं ना प्रभु?
इस अनंत आकाश के नीलम में बहते हुए मौन से सब कह रहे हैं शम्भू। इतना दिव्या - इतना भव्य प्रसंग रच डाला प्रभु। यूं तो प्रकृति स्त्री है। खूबसूरती उसके हिस्से की है। पर शिव है तो खूबसूरती भी है।
हे कैलाशों के वासी, 'उर्वी'-पार्वती -"पर्वत की बेटी" आपको आवाज़ लगाती। इस 'उर्वी' पर पड़े हर कंकर में शंकर। आपको ही लेने आना है। दिल की ज़मीन बुहार के रखूंगी प्रभु, मेरे अंदर उतरने का न्योता दे रही हूं, आना ही होगा आपको।
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