लक्ष्मी क्यों कहते हो?

सुनो पुरुष !

गृहस्थी की बागडोर को स्त्री के हाथों में देते हुए यही कहा जाता है की वो घर की लक्ष्मी है। लेकिन लक्ष्मी का साथ निभाने के लिए पति नारायण बनने की कोशिश करते हैं भला?

patni ghar ki lakshmi


लक्ष्मी को नारायण के पैर दबाते देख लोगों ने तो लक्ष्मी को नौकरानी ही समझ लिया। औरत को लक्ष्मी कहकर उस पर जिम्मेदारियां लाद देना आसान है, लेकिन उसका हर कदम पर साथ देने वाले एक नारायण स्वरुप पति का धर्म निभाना कठिन है। तो जब दोनों पहिये सामान रूप से नहीं चलेंगे तो गृहस्थी का संतुलन और रिश्तों में सार्थकता कैसे मुहैया होगी। 

अपने सपनों के पीछे भागती एक स्त्री का पीछा करते हुए क्या आपने कभी उसे रिश्तों के कुरुक्षेत्र में खुद से लड़ते देखा है? उसके शरीर के कपड़ों से परे जाकर उसके मन को खोलकर कभी पढ़ा है आपने? 

हां, देखा है, लड़ते, लड़खड़ाते भी देखा है। और बड़ी सहजता से उसे अनदेखा भी कर दिया, हमेशा के जैसे। अरे आप जानते ही क्या हो रसोई और जिस्म की गणित से परे एक स्त्री को?  

आपने तो गालियां भी मां -बहन की बना रखी हैं। लिपटकर रोने के लिए जब बेटियां अपनी बाहें देती हैं तब कुलदीपक के लिए बेटा ज़रूरी क्यों दिखने लगता है? 

आप चाहकर भी ना दे पाए वो प्यार जो उन्हें सहज ही मिलना था जबकि प्यार में आपके सर्वाधिकार सुरक्षित रहे।   

महज शब्दों में सीमित नहीं, इसे अर्थों में विस्तृत कीजिये। स्त्री है ये। ये वो ताकत है जो 'मर्द' पैदा करती है। 

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