आम सी जिंदगी !
कभी चिड़िया को मिटटी में लोटने के बाद पंख फड़फड़ाते देखा है? इस दृश्य को देखते ही भावुक होता हुआ एक किसान अपने साथी से कहता है की इस साल अच्छी बारिश होगी। जो साफ़ दिल के मालिक होते हैं वे इस तरह के भोलेपन के साथ जीते हैं।
पेड़ से पककर जब आम गिरते हैं तो उसे देख कर किसान समझ जाता है की अब आमों तोड़ने का समय आ गया है। इस वक़्त जो आम आते हैं, वे कुछ मीठे होते हैं कुछ खट्टे। जैसे की ये संसार है। ना तो पूरा मीठा है और ना ही पूरा खट्टा ही है। हमारे ज़िन्दगी के अनुभवों की प्रकृति भी कुछ ऐसी सी रहती है।
भारत का ऐसा कोई घर नहीं जहां आम प्रेमी ना रहता हो, जो अपने महबूब का इंतज़ार फरवरी से ही शुरू कर देता है। मई -जून तक आते आते आम सम्पूर्ण भोजन बन जाता है। तब तक खाया जाता है जब तक प्रेमी खुद आम सा ना महकने लगे। रसास्वादन की परिभाषा क्या सटीक बैठती है इस पर।
नागार्जुन के हिसाब से -
आम चार प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के आम कच्चे होने के बाद भी पक्के दिखते हैं। दुसरे प्रकार के आम पक्के होते हैं,पर पक्के दिखते नहीं। तीसरे प्रकार के आम कच्चे होते हैं और कच्चे दिखते भी हैं। और आख़िरकार चौथे प्रकार के आम वे आम होते हैं जो पक्के तो होते हैं और पक्के दिखते भी हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव हमे ज़िन्दगी में मिलने वाले लोग भी दे जाते हैं।
झुलसती गर्मी में आम दोपहर का खट्टा-मीठा भरोसा है।
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