जब कोई गुम हो जाए
एक बाबा को पार्क में टहलते हुए एक दिन एक रोटी हुई बच्ची मिली। बाबा ने उसके पास जाकर पूछा, "क्यों रो रही हो?"। बच्ची ने सुबकते हुए बताया, "मैं अपनी प्रिय गुड़िया लेकर यहां खेलने आयी थी, पर अब वह खो गई है।" बाबा ने उस बच्ची से कहा चुप हो जाओ, घबराओ मत, तुम्हारी पसंदीदा गुड़िया तुम्हे ज़रूर मिल जाएगी। तब वह बच्ची शांत हो गई। बाबा ने बच्ची से कहा, "गुड़िया ढूंढने के लिए मुझे थोड़ा समय लगेगा। कल तुम्हे तुम्हारी गुड़िया मिल जाएगी।" ऐसा कहकर बाबा चले गए। गुड़िया का यह हुआ की ना तो वह बाबा को मिली और ना ही उस बच्ची को।
बाबा ने उस गुड़िया की तरफ से एक (काल्पनिक) चिट्ठी लिखी उस बच्ची के नाम। फिर जब अगले दिन वह बच्ची अपनी खोई हुई गुड़िया के मिल जाने की आस लेकर पार्क पहुंची तो बाबा ने वह चिट्ठी उस बाची को पढ़कर सुनाई। बाबा ने चिट्ठी में लिखा था, "तुम रोना मत, मैं दुनिया घूमने नीलकी हूँ और कुछ-कुछ दिनों में मैं तुम्हे अपनी यात्राओं के बारे में लिखती रहूंगी, बस तुम रोना मत।"
अब बाबा नियमित रूप से उस बच्ची को उसकी खोयी हुई गुड़िया की तरफ से चिट्ठी लिखने लगे। बाबा बच्ची को चिट्ठी पढ़कर यात्राओं का वर्णन सुनाने लगे। बाबा के उस काल्पनिक पर रोचक वर्णन ने बच्ची को कभी रोने नहीं दिया। बच्ची ख़ुशी-ख़ुशी अपनी घुमक्कड़ गुड़िया के रोचक किस्से सुनने लगी। उसने रोना बंद कर दिया था। वह खुश रहने लगी।
फिर एक दिन जब कई साड़ी कहानियां हो गई थीं तब बाबा ने बच्ची को एक दूसरी गुड़िया लाकर दे दी। लाज़मी है, वह गुड़िया बच्ची की पुरानी खोई हुई गुड़िया से अलग थी। बच्ची ने अपनी गुड़िया ना पाकर बाबा की ओर देखा। बाबा अनजान बनते हुए उस नयी गुड़िया में चिपकी हुई एक चिट्ठी को निकाल कर पढ़ने लगे।
उसमे लिखा था,"यह मैं ही हूँ, वह तुम्हारी गुड़िया जो पार्क में खो गई थी। दुनियाभर की लम्बी यात्राओं के कारण थोड़ी बदल गई हूं और थक भी गई हूं।" बच्ची को उस गुड़िया पर विश्वास हो गया। वह उसे लेकर घर चली गयी।
सालों बाद जब वह बच्ची बड़ी हो गई, तो एक दिन वह अपनी अलमारी में कुछ ढूंढ रही थी तब उसका ध्यान उसी गुड़िया पर गया, जो बाबा ने उसे दी थी। अपने बचपन की उन बातों को वह याद करके हंसाने लगी। उसे अब समझ आ चुका था की कैसे बाबा ने उसका मन रखा। उसे उस गुड़िया पर फिर से प्यार आने लगा। तभी उसका ध्यान उस गुड़िया की फ्रॉक की आस्तीन में छुपी एक छोटी सी चिट्ठी पर गया। उसने तुरंत उसे बड़ी उत्सुकता से निकाला और पढ़ने लगी।
चिट्ठी में लिखा था,"हर वो चीज़, वो इंसान भी, जिसे तुम प्यार करती हो, कभी ना कभी तुमसे खो जाएगा या तुम्हारे पास से कहीं और चला जाएगा। अंत में जो लौट कर आएगा और तुम्हारे पास रहेगा, वही तुम्हारे लिए सच्चे रूप में बनी है। रूप भले ही अलग हो सकता है, पर प्यार एकदम खालिस (शुद्ध) होगा।"
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