महक और यादें


महक और यादें, इनका भी एक तरह का साथ है। पुराने कवि - शायर कहते हैं, "तू चला गया इस बात का गम नहीं है, पर जाने के बाद जो महक रह गयी उसे कैसे संभालें, कहीं वो ना चली जाए! बस तेरी महक बनी रहे, सालों बाद भी …”

इसलिए ज़रूरी हो जाता है यादों को खूबसूरत और साथ ही खुशबूदार बनाना।

 

इंसान हैं हम, तो यादें तो होंगी ही। कुछ अच्छी, कुछ बहुत अच्छी, कुछ बुरी भी। ऐसा कहाँ हो पता है की हम बिना कोई बात याद किये रह जाएं। यादों की खुशबुएं हमारे जहन में रहती हैं। जिस तरह घर में बासी चीज़ अगर रह जाए तो बदबू आ जाती है उसी तरह बुरी यादें हमारे मन की सेहत को परेशान करती हैं। हमारा मन कचरे का घर हो जाता है।

 

तो चलिए, यादों को पूरे लगाव के साथ भरपूर खूबसूरत बनाएं। ये तब होता है जब मन को अगले - पिछले सारे हिसाबों से अलग कर दें। तब उसमे हमारी पसंदीदा महक भरने लगेगी और हमारे शरीर का वातावरण महकने लगेगा।


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