लफ्ज़




एहसास कि मुंडेर को लांघकर लफ्ज़ जब हवा में शामिल होते हैं … कानों में घुलते से चले जाते हैं और कागज़ कि सतह चूमते हैं तब अनेक खूबसूरत आकार लेते हैं। कभी सोंचा है इन लफ़्ज़ों कि तासीर कितनी अजीब होती है। कभी इनकी वजह से किसी का दिल टूट जाता है तो कभी उनकी जुगलबंदी कि सोहबत में रिश्ते जोड़ते हुए एहसास नए आयाम लेता है।

 

लफ्ज़ किसी भी ज़बान में लिखा गया हो, उसकी अपनी एहमियत है अपना अस्तित्व है। हमारे ख्यालों कि अंगुली पकड़कर मन के आंगन में ये लफ्ज़ इस प्रकार नृत्य करते हैं जैसे बरसते बादलों की छत के नीचे नाचते मोर।

 

यूं कई मर्तबा हमारे विचारों का वजन इतना ज़्यादा हो जाता है कमी यह नाज़ुक लफ्ज़ हांफने लगते हैं और कई बार अपने स्वरुप में आने से पहले ही बिखर जाते हैं, अधूरे रह जाते हैं। तब फिर दुसरे रास्ते से बाहर आते हैं। ये पनाह लेते हैं आसुओं में या कई बार होठों पे तैरती मद्धिम मुस्कानो में। ऐसे में लफ़्ज़ों कि आयु ज़्यादा हो जाती है जो दर्ज हो जाते हैं कागज़ों के पटल पर और साथ अपने कैद कर ले जाते हैं उन भावनात्मक तरंगों को जिनकी महकती रौशनी में उन्हें उकेर कर स्थाई रूप दिया गया था वक़्त के किसी पहर में।

 

यह लफ्ज़ कलमकारों कि सासें है। वे इनसे जादू करते हैं। इनके साथ मस्ती करते हुए कब इक अनूठा, नया सन्दर्भ बन जाता है, पता नही चलता। ये वो पल हैं जिन पे भावनाएं, एहसास, अनुभव, विचार, ख्याल, सोंच … भ्रमण करते हैं।

 

कई अर्थों को लिए चलते हैं ये, और ज़रुरत के अनुसार व्यक्ति अपने अर्थ चुन लेता है। हमारी निरंतर गति को असीम योगदान देते ये लफ्ज़ …………………


Reactions

Post a Comment

0 Comments