पुराने शहर




बीती सदियों कि बसाहटों कि जड़ें बेहद गहरी होती हैं। तहज़ीब भी इनकी बाहों में होती है और रिवाज भी इन्हे पहचानते हैं। शहर का दिल अक्सर उसके बीच में ही होता है, जिसे हम-आप पुराना शहर बुलाते हैं।

 

पुराने शहर में एक खूबसूरत ठहराव होता है। कंटाल जाता है तो अपनी हदों में करवटें बदल लेता है। कभी इस छोर को देखता है कभी उस तरफ निगाहों को घुमा लेता है। यहां के बाशिंदे भी विरले ही होते हैं। सदियों से धड़कते आ रहे दिल, सालों पुराने, हर गली - हर नुक्कड़ से बखूबी वाकिफ। दूर दुकानों सड़कों पर खड़े होकर ही पूरे हक़ से आवाज़ लगते हैं। प्यार अपनत्व के नामो से पुकारते हैं। इंसानो में पूरी दिलचस्पी लेते हैं, इनके पास बतियाने का वक़्त भी होता है और बेपनाह सब्र भी।

 

नया शहर अल्हड़, बेधड़क या बिंदास नज़र आता है, लेकिन फ़िज़ा में खलती हुई अजनबियत कि वजह से कुछ कुछ भीतर से अपनी अनकही कमजोरी को छिपता हुआ सहमा सा लगता है। कुछ अज़ाब कुछ गज़ब। दुआ –सलाम जैसे अलफ़ाज़ अब महज़ लफ़्ज़ों में अपना अस्थित्वा संभालते हुए से लगते हैं। पर्यटकों का ऐसा झुंड जो अपनी ही जगह पर भी भटके हुए से फिर रहे हों।

 

नए शहरों के लोगों का घर उनके घरों कि सीमा तक ही समाप्त हो जाता है, इसलिए वे कचरा सड़क पर या कहीं भी उढेल सकते हैं जबकि बेहद घनी आबादी और बेहद ख़राब इंतजामात के होते हुए भी पुराने शहरों के लोग पूरी गली को अपना समझते हैं, लगाव रखते हैं।

 

नयी बसाहटों वाले चले कि तैयारी में कड़ी सैलानी नज़र आते हैं जबकि पुरानी बसाहटों वाले ज़मीनी लगते हैं , असली लगते हैं। अपने शहर के नाम पे कस्मे खाते हैं। विरासतों के सही हक़दार लगते हैं।


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