ऊब का इंतज़ार क्यों करें? हर रोज़ तलाश हो नए मंजरों की। नया अंजाना होता है, इसलिए अक्सर ख़ुशी देता है। उन शिकारों को लेकर निकल चलें एक अपनी ही तरह की अनोखी यात्रा पे। इंतज़ार ना हो 'कुछ' होने का, बल्कि हम खुद कुछ करें उस 'कुछ' के होने के लिए।
हाँ, मान लिया बोरियत आ ही जाती है किसी भी काम से, चाहे मन का ही क्यों ना हो। इलाज यही है, रोज़ के सफर के रास्ते - पगडंडियां बदलें, मन की आखों को खोल मिले रोज़ नयी मुस्कुराहटों से। कभी मन के कबीर को गुनगुनाने दें। आनंद की सीढ़ियों पर आरोहण होता है। मुसाफिरी का राग ऐसा ही होता है, पूरी कायनात इसे गाती हुई-सी लगती है। ज़रा ध्यान दीजिये उस तरफ भी जहां चट्टान पर एक बैंगनी फूल खिला है।
ये ज़िन्दगी भी इस दुनिया की तरह रंग-बिरंगी होती है। बाहर दृश्य बदलते हैं,भीतर पहलू।
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