प्रश्न, छोटा - सा है। पर इसका प्रभाव गहरा पड़ता है।
"पिछली बार, कब किसी काम को पहली बार किया था?"
आपने भी यह महसूस किया होगा की अधिकाँश लोगों की लिए जीवन एक ही चक्र में घूमते रहने जैसा है।
याद होगा आपको की यह एक मुहावरे का अर्थ भी है - "कोल्हू का बैल होना"
सुबह उठे, फिर आलस के साथ वहीं कुछ देर बिस्तर पर कश्मकश हुई। फिर होती है पहली ppt चालू :- ब्रश - नहाना - नाश्ता गटकना - office के लिए दौड़। पहुँच गए ऑफिस। अब दूसरी ppt :- काम - गपशप - लंच - घर का रास्ता। आगये घर। आखरी ppt :- TV - बहसबाज़ी - डिनर ठूंसा - mobile - बिस्तर। निढाल होकर सो गए। और अगले दिन वही तीनो ppt: play - repeat. हालांकि अभी #workfromhome की वजह से ऑफिस अब घर में ही आगया है।
क्या यह कोल्हू के चक्कर जैसा नहीं है? अगर हाँ, तो क्या ऐसे बना रहना ज़रूरी है? अगर नहीं, तो जीवन का ऊबाऊ होना भी ज़रूरी नहीं।
जीवन, मात्र जीवित रहने से कहीं ज़्यादा है। मन को खंगालिए। अब देखिये, कितना कुछ है जो आपको खुश रखता है, आनंदित रखता है। अंदर झांकेंगे तो पाएंगे की यह सूची वास्तव में बहुत लम्बी है।
अगर हम सदा खोजी बने रहेंगे तो जिज्ञासाएं सदैव उन्मुक्त बनी रहेंगी।कोशिश कीजिये। उत्सुकताओं के कौतुहल को बनाये रखिये।
"Life is a struggle" - ऐसा नहीं है यार। बल्कि "जीवन जश्न है।"
और इस जश्न में सदैव अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं। इस भाव को ज़्यादा से ज़्यादा फैलाएं।
जीवंत जीवन जीने के लिए अपने आप से यह प्रश्न पूछते रहिये - " पिछली बार कब मैंने किसी काम को पहली बार किया? "
इस सवाल का सकारात्मक जवाब दीजिये और असर देखिये …
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