जिनके आंगन में, बगीचे में या घर के बाहर, आस - पास कहीं भी पेड़ होता है, या कभी हुआ करता था, केवल वही बता सकता है इनकी सोहबत का आनंद। आपकी दुनियां में एक अनकही सी पक्की हिस्सेदारी दर्ज कराते हैं ये पेड़। पेड़ हो तो फ़िज़ाएं खाली नहीं रहती। सुबहें खामोश नहीं रह सकती। परिंदे इन्हे गुलजार कर देते हैं।
अनायास ही हम पेड़ के नीचे बाजरा - ज्वार बिखेरने की आदत बना लेते हैं। और वहीँ बाजू में पानी के लिए मिटटी का बर्तन भी पेड़ की छाया में अपनी जगह बना लेता है। महसूस किया अपने, यह वर्णन मात्र कितना हल्का और खुशनुमा है।
पेड़ के नीचे एक अलग ही दुनियां बना लेता है पेड़। सूखे पत्ते गिरते रहते हैं। पंछी दिनभर अठखेलियां करते हैं। फिर शाम को सारा आकाश नाप के वापस अपने बनाये हुए तिनकों वाले बसेरे में लौट आते हैं। इन बसेरों और इनके रहवासियों को पेड़ एक दादा जी की तरह संभालता है।
जिंदगी को भी ऐसे समझा जा सकता है। आप एक पेड़ को अपनी दुनियां में शामिल करके देखिये। इनके आसपास से सूखे पत्ते हटाकर बैठने के लिए जमीन साफ़ करते हुए हर बार यह अहसास होगा की "बीती ताहि को बिसारना" कैसे है। हर सुबह जब आप दाने लेकर इसकी छाया तले जाएंगे, इंतज़ार में बैठे पक्षी आपको आपके क़र्ज़ याद दिलाएंगे।
पत्तों की ओट से झिलमिलाती धुप आपसे कहेगी कि साया है , तो रौशनी भी है , सर्द है तो गुनगुनी भी है जिंदगी।
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