क्या अगर हम दिवाली पर घर के साथ मन की सफाई भी शुरू कर दें तो?

 


इस दिवाली अपने मन के दाग भी साफ़ करें हम


दिवाली तब होती है जब हमारे अंदर रौशनी होती है। यह त्यौहार एक-दुसरे को दुआएं देने का, पुराणी बातें, पुराने खाते जो एक-दुसरे के साथ अटके थे, उन्हें खत्म करके नए साल की शुरुआत करने का समय है। दिवाली सिर्फ बाहर मनाने का उत्सव नहीं अपने मन के अंदर मनाने का त्यौहार है। 

दिवाली आने के कई दिन पहले से ही हम सब घर की सफाई शुरू कर देते हैं। क्या अगर हम इसके साथ ही हमारे मन की सफाई भी शुरू कर दें तो? 

हर रोज़ हम ऊपर-ऊपर से सफाई करते हैं। सामानों को यूँ हो अलमारियों में रख देते हैं। ऐसा करते-करते चीज़ें इतनी ज़्यादा इकट्ठी हो जाती हैं की जब कोई अलमारी खोलता है तो एकदम से नीचे गिर जाती हैं। इसी तरह हमारी ज़िन्दगी में भी होता है। हम सबसे बहुत प्यार से बातें करते हैं, अच्छा व्यवहार करते हैं। हमे लगता है की हमारा सबके साथ कितना अच्छा रिश्ता है। पर हम ये नहीं देखते की हमने अपने मन में क्या रखा हुआ है। हम उनके बारे में सोंचते कुछ और हैं और बोलते कुछ और। हम उन्हें खुश करने के लिए कुछ करना नहीं चाहते फिर भी करते हैं। उन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, पर चलो कोई बात नहीं, रिश्ता ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है इसलिए मुझे तो अच्छा ही व्यवहार करना है। ये जो सफाई हो रही ही ये ऊपर -ऊपर की सफाई हो रही है।   


पर जैसे दिवाली के समय वाली सफाई एक अलग ही स्तर पर चालू जाती है वैसे ही हमे हमारे मन की सफाई भी अलग स्तर से करनी होगी तभी सफाई पूरी होगी। 

 

अलमारी के अंदर और मन के कोने-कोने में बहुत सी पुरानी बातें राखी हैं। किस ने एक शब्द कहा तो उस पर हमारा बहुत कुछ बाहर निकल आता है। फिर हम माफ़ी भी मांगते हैं की मुंह से निकल गया। वह बात अगर मन में ही ना हो तो मुंह से भला निकलेगी कैसे?  


तो दिवाली आ गई है। घर के साथ मन के कोने-कोने की भी सफाई करनी है। बिना इसके कैसे माँ लक्ष्मी को बुलाएंगे। इसलिए अंदर की साफ़ सफाई, अंदर की दिव्यता बहुत ज़रूरी है। फिर जहां पुराणी बातें, कड़वाहटें जमा होंगी वहां तो सफाई की ज़रुरत है। कुछ मेल तो इतने पुराने हैं की वो मेल लगते ही नहीं। वो इसलिए क्यूंकि वे मन के दाग हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं। 


तो जैसे दिवाली में कोने-कोने की सफाई करते हैं वैसे ही चलिए अपने मन के कोने भी साफ़ करते हैं। कुछ दिन खुद के साथ भी बैठें। अच्छे से कोने-कोने में जा के देखें। जहां पहले कभी नहीं गए, कभी नहीं झांका, वहां चलिए। बचपन में कुछ हुआ था, सालों पहले कुछ हुआ था, किसी ने कुछ कह दिया था, किसी ने कुछ किया था। ये सब अटाला है, इसे हटाना है। ये सारे दाग सब साफ़ करने हैं। ये आवाज़ें जब भीतर चलती रहती हैं हमें नया कुछ सुनाई ही नहीं देता। एक गलत सींच एक दाग है और एक सही सोंच दाग को साफ़ कर देता है। ान के दागों को साफ़ कर लिया तो जिंदगी में दिवाली आ जाएगी। 


तो चलिए, खुद के साथ समय बिताएं और कोने-कोने में जाकर हर पुराने दाग को खत्म कर दें तभी अपना मन दिवाली मनाने के लिए तैयार हो पाएंगे।  

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