इन दुनिया में आते ही जो हमे घुट्टी में मिली भाषा होती है वही तो मातृभाषा है। भाषा अकेली नहीं होती, उसमे विरासत, इतिहास, पूर्वज, रिवाज, परम्परा, संस्कृति, धर्म, सोंच और संस्कार जैसा बहुत कुछ समाया होता है। भाषा बच्चे तक इन सबको पहुंचाने का जरिया बनती है। यह सब बेहद सहज रूप से होता है, यानी बच्चे को अपनी विरासत, परम्परा और संस्कृति के बारे में जानने के लिए कोई ज़्यादा मेहनत नहीं krni है। घर में सबके साथ बोलते - बतियाते, खेलते - कहते वह सबकुछ सीखता rehta है।
अगर किसी की अपनी भाषा जाननी हो तो? तो उसे अपनी माँ से बात करते सुनें। बच्चों के साथ खेलते हुए, लाढ़ लड़ाते हुए सुनें। इस समय इंसान सिर्फ अपनी भाषा में hi बात करता है। क्योंकि जबान का इत्मीनान तो अपनी भाषा में ही मिलता है।
तो वो भाषा जो अपनों के साथ संवाद बनाने में मदद करती है, वो अपनी है। जो अपनी है, उसके साथ परायेपन का व्यवहार भला क्यों किया जाना चाहिए। जो दुनियां कि समझ लेने में मददगार रही हो, उस जबान से ज़्यादा अपना और क्या हो सकता है। जब कोई मुश्किल सताए, जरा सा सिरदर्द भी हो, तो माँ कि गोद में लेटकर किस भाषा में अपना दर्द बयां करेंगे? अपने परिवेश से दूर तो परिंदे भी नहीं रहते। प्रवास कर लौट जाते हैं। वो भी जानते हैं कि पेड़, नहर, नदी, तालाब, जंगल, पहाड़ तो दुनिया के हर हिस्से में मिल जायेंगे। बसेरा कहीं भी बनाया जा सकता है, लेकिन शायद अपने परिवेश का खिंचाव उन्हें कहीं और रुकने नहीं देता।
पर हम इंसान अपने परिवेश और भाषा को अलग करने को मुमकिन मान रहे हैं, लेकिन चौपालें भले मिटा दी जाएं, चबूतरों का अस्तित्व ना छोड़ा जाये, घर कि चौखट रूप बदल ले, तब भी घर -द्वारे, दीपक, मांडने, रंगोली, अल्पना, मेहँदी, आलते, झूलों कि रस्सियां, सावन, चूड़ियों के रंग, दुपट्टों कि किनारियाँ, गोटों कि चमक, कच्चे रास्ते, पगडंडियां, खेत, पनघट, रहत को किसी और जबान का रंग चढ़ ही नहीं सकता।
अपने घर हिंदी (जो भी निज भाषा है आपकी) की बगिया को महकने दें ताकि बच्चा सिर्फ पाठ्यपुस्तकों के बल पर निर्मित मशीनी मानव नहीं होगा, जिसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य कोई ख़ास नौकरी पा लेना होता है, बल्कि वह अपने परिवेश, अपनी मिटटी, अपने कर्तव्यों से जुड़ाव महसूस करने वाले एक संपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में विकसित होगा।
सच तो ये है कि अपनी भाषा वटवृक्ष कि तरह होती है, जो गहरे जड़ पकड़ती है, हर तरफ से फैलती है और अकाल में भी नहीं सूखती। आज़माकर देख लीजियेगा।
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