गुनगुनी धुप, गुनगुनाता मन
छांव शरारती, इठलाता तन !!
गुलाबी शहर में गुलाबी सर्दी दस्तक दे चुकी है। खिड़की की जालियों से झांकती धूप चेहरे पर अच्छी लग रही है। लम्बी गर्मियों के बाद धूप में अब सुकून मिलता है। सबसे ज़्यादा तब जब आप दिन का खाना खाकर बहार बरामदे या बालकनी (जिसे जो नसीब है) में बैठते हैं। घर के बूढ़े बुजुर्ग जो सुबह से घूप सेंक रहे हैं, वे अब धूप की तरफ पीठ करके गर्माहट का आनंद ले रहे हैं।
धुप लगाने के लिए गरम कपडे, कम्बलें, रजाइयां वहीं एक तरफ रखे हुए हैं। ऐसे में मन करता है की यहीं चटाई दाल लें या मुद्दा खींच लें। हाथ में कोई पत्रिका या पसंदीदा किताब लेकर आधे दिन की बची हुई धूप में थोड़ी देर अर्रा लें। अर्राना यानी कुछ देर के लिए सब कुछ छोड़ कर, एकदम बेपरवाही के आलम में सुस्ताएं। कुछ लोग ये दिनभर भी करते हैं। हमे उन से जलन नहीं होनी चाहिए। बहुतों के लिए इस 'जिंदगी' में अर्राने के लिए वक़्त नहीं। और फिर आते हैं बीच के जिनके पास पूरा दिन तो नहीं पर कुछ वक़्त ज़रूर होता है या यूँ कहें की वे कुछ वक़्त निकाल ही लेते हैं अर्राने के लिए। ये वें हैं जो दो पल जिंदगी ज़्यादा जीते हैं।
अब धूप ज़रा सरक गयी है। आचार की बरनियों को थोड़ा खिसका के फिर से धूप में ले लिया गया है। ये अदरक, गाजर, नीबू के आचार अपने तेज़, तीखे, खट्टे ज़ायकों से खाने का स्वाद बढ़ा देते हैं। सर्दियों के पकवान मन को खिलाते हैं और सर्दियों की धूप फूलों को। घर के गुलाब क्या सुर्ख लाल हो जाते हैं इस धूप में।
महकती है क्यारी, महकता है आंगन, और महकता है हमारा मन। देखा! कैसा जादू करती है ये गुनगुनी धूप सर्दियों की और गुनगुनाने लगती हैं सभी मुस्काने। है ना ?
2 Comments
बहुत सुंदर
ReplyDeleteढेर सारा धन्यवाद :) आते रहिएगा कहानी ग्राम में
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