पत्तों के बदन पे सरकते मोती

ये साजिश है बूंदों की 

जो एक-दूसरे को छूते ही फिसल जाती हैं जज़्बातों की तरह, लांघ के आंखों के कच्चे किनारे। 

rain drops on rose and leaves

लम्बे इंतजार के बाद, बारिश उर्वी (धरती) को हरी चूनर की सौगात देती है। इंतज़ार का खूबसूरत फल। सब हरिया जाते हैं, बगिया की छोटी क्यारियां और बड़े मैदान। हैरान आँखे देखती हैं कोने में पनप गए नन्हे आम को। बाहर पथरीली जमीन पर पीपल झांकने लगता है। समझ नहीं आता की ये नीम यहां आया कैसे। ये सौगातें हैं गिलहरियों और चिड़ियों की जिन्होंने कभी उस ज़मीन को अनजाने में बीज का तौहफा दिया होगा। कमाल है ना कुदरत। जो फल हमे देती है उसी के बीज में उसका पौधा छुपा है। 

जब घर - आंगन में या सड़क किनारे थोड़ा पानी इकट्ठा हो जाने पर नन्हे नाविक कागज़ की कश्तियां खेते हैं तब वो छोटी सी पानी की ताल एक नदी सा सम्मान पाती है।  

बारिश का आना सुकून के आने की सूचना है। धीमे-धीमे सब धुलता है, फिर सिंचित होते हैं पेड़-पौधे, फूल, घर-द्वार, मंदिर, तुलसी, सब। मंशा लेकर आओ, सब धूल जाता है, साफ़ हो जाता है। फिर जब बिखरते बदरा से सूरज झांकता है तब पेड़ों की डालियों पर पानी की बूंदें चाँदनी सी चमकती हैं। 

ये बेशुमार मोहब्बत है। यूं ही नहीं मेघ जल उड़ेलकर उर्वी को इस कदर भिगोते हैं की उस पर रंगों का आकर्षक इंद्रधनुष बनता है। 

rain drops on leaves looks like pearls


सूख चुकी आंखों को नमी देती है। कुछ लोग इस मौसम का इंतज़ार करते हैं अपने संवेदना के ज्वार को बहा देने के लिए। आसानी रहती है। निकल भी जाता है, बिना दिखे। जहन की जमीन में जो ख्वाबों के बीज बोए हैं, ये बारिशें ही तो उन्हें सींचती हैं। 

ये उमीदों की बूंदें हैं, जब बरसती हैं तब किसान के बंजर चेहरे मुस्कुराते हैं। प्यार का छपाका है। मस्ती का मौका है। रेलमपेल में भाग रहे को कुछ देर थम जाने की पुकार है। चाय-पकोड़ों का बहाना है। दुआ का कुबूल होना है। 

फिर क्यों प्यासे रह गए ऐसी बारिश के बाद भी?  



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