क्यूंकि बात नज़ारों की है

 नज़ारे कैसे हैं, ये नजरिया भी तय करता है 

खुश मन, खुश शक्ल बना देता है। और ये तो हमे चाहिए भी। खूबसूरत दिखना चाहते हैं हम सभी। मन की मिटटी में खुश विचार डल जाये तो चेहरे का फूल खिलखिला उठेगा और नज़रिये आंखों में महकने लगेंगे। 

घर की छत पर फूल पौधों की बगिया बनायी है। लताएं नीचे ज़मीन तक आ रही हैं। कनेर के पत्तों का छज़्ज़ा बन गया है। नीचे पीले हो चुके पत्तों और फूलों की चादर बिछ गयी है। कितना प्यारा है न ये फूल-पत्तों का बिछौना! ये एक नजरिया है। किसी के लिए ये सूख चुके पत्तों और मुरझा गए फूलों का ढेर। कई तो कई तो इसे कचरे का भी नाम सकते हैं। ये भी एक नजरिया ही है। 

कोई इसे बुहार के सफाई का प्रमाण देगा। तो कोई फूलों के कालीन की कल्पना करके कविता लिख देगा। वैसे दोनों ही सूरत में फूल-पत्तों का पेड़ों या ज़मीन पर होना प्रकृति की मुस्कान है। उर्वी (पृथ्वी) का स्नेह है। 

नियति को स्वीकार करके हर फैसले को उसके हवाले कर देना, एक नजरिया है। सपनों को साकार करने के इरादों को मज़बूत कर कोशिशें ज़ारी रखना, यह अलग नजरिया है। वैसे कोशिशें भी नियति का हिस्सा ही तो हैं। कोई कैसी भी सोंच रख सकता है पर मैं मेहनत और प्रयासों को ही अपनी नियति मानती हूं। ये जो बीच का अंतर है वह बताता है की 

"एक और सोंच मौजूद है" 



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