हर बात किसी न किसी के सापेक्ष होती है। कितने लोग होते हैं, जो कहते हैं की किसी ने मेरा साथ नहीं दिया। फलां स्थिति में हम अकेले थे, अकेले झूझ रहे थे।
जरा सोंच कर देखिये .....
क्या कोई भी किसी भी स्थिति में अकेला होता है? हो सकता है?
हम सब इस दुनियां में किसी न किसी कड़ी से जुड़े ही हुए हैं।
एक इंसान का नाम लीजिये। उसके जन्मदाता से उसकी कड़ी जुडी होगी। उसकी संतान से कड़ी जुडी होगी। उसके भाई-बहनों से रक्त की कड़ी जुडी होगी। तब अकेला कैसे हुआ?
यही बात काम के लिए ....
कोई भी व्यक्ति कोई काम अकेले नहीं कर सकता। उसके आगे-पीछे कोई कड़ी होती है। जिस तरह भोजन बनाने में ढेर सारे अवयव काम करते हैं, उसी तरह जीवन के पक्ष में कई लोगों का साथ होता ही है।
मुद्दा है कि हम किसे साथ मानते हैं।
हर इंसान का स्वभाव अलग होता है। अगर हम खुद को अकेला कहते हैं, तो उस समय हम किसी से अपने जुड़ाव को महसूस ही नहीं करते। लगता है, वह भी हमारे जैसा कहां है, हमारी तरह सोंचता नहीं है, हमे पूछता ही नहीं हो, तो साथ नहीं हो सकता।
क्या यह संभव है?
नहीं, यह संभव नही है। हम किसी को साथ न मानें, तो यह केवल एकतरफा बात होगी। कोई साथ नहीं है, यह एक तरह का इल्जाम ही है। आपने हाथ बढ़ाया, और वहां मौजूद किसी ने हाथ ना थामा, तो इससे वहां गैरमौजूद लोगों तक पर इल्जाम नही लगाया जा सकता।
हर बार कोई होता है ....
जीवन कड़ियों से, जुड़ाव से एक सांकल कि तरह चलता है। सबका जीवन। हम कितनी ही बार केवल एक तरफ देख रहे होते हैं। कड़ी के दुसरे सिरे कि तरफ निगाह डालेंगे, तो जानेंगे कि उस तरफ भी एक सिलसिला है।
रास्ते हर दिशा में जाते हैं। जीवन किसी जगह नही ठिठक सकता। ना रवानी में, न साथ में, ना रिश्तों में। हम निराशा को चुनकर शिकायत करते हैं या आशावान होकर कदम बढ़ाते रहते हैं, यह निश्चित रूप से हमारा चुनाव है।
अकेलापन क्यों चुनें। वहां देखें जहाँ रौशनी है। कड़ियां हैं, जुड़ाव हैं।
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