रेल


रेल की बोगी मानों घरों को खोलकर जोड़ दी गयी एक श्रृंखला होती है, जो एहसास कराती है की मंज़िल पर हम साथ ही पहुंचेंगे। हम जब ट्रेन की यात्रा पर होते हैं तो यह पाते हैं की कस्बों और शहरों के बीच कई और छोटी-छोटी बसाहटें हैं, जिन्हे नक्शा नहीं पकड़ पता था। हर गाँव, हर बस्ती की शक्ल जुदा है। ट्रेनें अक्सर पक्के पेड़ों के साये तले बने कच्चे मकानों के बीच खेलते बच्चों और फुदकते पालतू जानवरों के नज़ारे किसी गुजरे ज़माने के पोस्टर से लगते हैं। बड़ा अद्भुत है आवागमन का ये साधन। एक पूरी अलग दुनियां। हर बार एक अलग ही अनुभव देने में सक्षम। जैसे ही ट्रेन रूकती है, आवाज़ों की एक लहर सी उठती है। जैसे मानों सांस आयी हो और पूरा आलम स्पंदित हो गया हो रेल के भीतर की दुनियां भी बाहर की ही तरह रंग-बिरंगी होती है। बाहर नज़ारे बदलते हैं, भीतर नजरिया।

 

हर सीट पर कोई कहानी चल रही होती है। उत्सुकता खिड़की पर बैठ अंदर बाहर दोनों का मज़ा लेती है। न सिर्फ सफर तय करते हैं बल्कि कुछ नए सफर के उमीदें खोल देते हैं जब नए रिश्ते से बन जाते हैं चंद घंटे साथ बैठे रहने से। कई बार तो रिश्ते पक्के तक हो जाते हैं यहीं ट्रेनों में। और इसी तरह महकती, गुनगुनाती लम्हों की पोटली बाँध आप घर ले आतें हैं खट्टी-मीठी यादें।


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