ख़ुशी का पता? इन नन्हों से पूछो


सच्ची ख़ुशी देखने के लिए बहुत ध्यान से देखना पड़ता है हमें। जो काम हमारे लिए बड़ा जटिल सा लगता है वह इन नन्हे मुन्नों के लिए नहीं। सीधी साधी खोज को बहुत मुश्किल नहीं बनाते ये। 

एक नन्हा सबक !

छोटे बालक को गेंद से खेलते दिखिए, वह गेंद फेंकता है फिर गेंद उस के पास वापस आ जाती है और बालक खिलखिला उठता है। सामान्य सा नज़ारा है पर उस नही बालक की आँखों में जो चमक आजाती है हँसते हुए वह ज़रूर हर बार असाधारण लगती है। अबगौर कीजिये हमारे मनोरंजन के असीमित साधनों पे। न जाने कितने ही प्रकार के हैं। उन सबके के होने के बावजूद क्या कोई एक भी साधन हमारा मन बहला पता है ? क्या हम खुश,उन्मुक्त रह पाते हैं ?

सच है, उस बालक जैसे हम नहीं खिल पाते। खिलखिलाना याद भी है पिछली बार कब हुआ था? 

एक मामूली सी गेंद के साथ बच्चे की व्यस्तता क्या हमें सोंचे पे मजबूर नहीं करती की हम सब 10 मिनट के लिए भी अपने किसी भी साधन के साथ ऐसा नहीं कर पाते। शायद उस नन्हे बालक के साथ मिलकर भी नही। उसके साथ खेलते समय भी हमारे मन में अनेकों काम चल रहे होते हैं या फिर हज़ारों बातें शुकायतें या फिर हम ऊबने लगते हैं। विशुद्ध आनंद के सामने होते हुए भी हम चूक जाते हैं। क्यों होता है ऐसा।   

गेंद के दूर जा कर पास आने और नन्हे बच्चे की खिलखिलाहट में एक संबंध है। सरल क्रिया पर सहेज प्रतिक्रिया का। 

समस्या यह है की हमे तलाश रहती है कुछ असाधारण की भाई ज़िद है मन की, नित नवीन ही चाहिए। बाजार में अगर कुछ नया आज्ञा तो हमे हमारा तुरंत पुराना लगने लगता है। और अगर वह नया हमारे करीबी किसी के पास आज्ञा फिर तो हम खोज शुरू कर देते हैं उस नवीन साधन की। सोंचते है, ये एक और चीज़ कर लेंगे न तो बस मज़ा ही आ जाएगा, मनोरंजन का साधन और भी मज़ेदार हो जाएगा। हम इस पर यकीन ही नहीं करते की ख़ुशी के सहज जरियों से भी उल्लास मिलता है। 

बालों में कंघी करती हवाएं, फूलों पर मंडराती तितली, गर्दन को सहलाते पेड़ों के नाम डालियाँ, पत्तों से फिसलती पानी की बूँदें, पंछी,फूल ये सब हमारे साथ ही तो हैं। इनके एहसास से क्षण भर की मुस्कराहट भी आ जाती है। पर इस से मिलने वाली खुश को हम पूरी तवज्जो क्यों नहीं दे पाते? ये पहुँच ही नहीं पाती हमारे दिल तक। लगता है उलझ के रह जाती है हमारे मन के घुमावदार रास्तों में। 

सहेज मन के सहेज द्वार सहेज आनंद को आकर्षित करते हैं। इन्हेतलाशने में कोई जटिलता नही। ये हमारे आसपास ही होते हैं, हमारे साथ। मेहनत है ही नहीं यहाँ पे, इतना सरल, इतना सहज है ये। 


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