क्यूंकि आपके होने से किसी को फर्क पड़ता है
अपनों की सुध लेना, उन्हें सुनना, आजकल उतना ही ज़रूरी है जितना की प्राणवायु (oxygen)। खासकर की इस महामारी - कोरोना के दौरान, इस ज़रुरत को बराबर समझ पाए हैं लोग। जब एकाएक सब थम गया तो अपनत्व पर भीतर की आँखों ने गौर किया। हमने आसपास को ज़रा और करीब से महसूस करना शुरू किया। चाहे वो हमारे घर की बालकनी में लटकी बेल हो या पास कहीं पत्थरों के बीच में उगा सदाबहार का गुलाबी फूल। चाय का कप लेते वक़्त जीवन संगिनी के चहरे पर भी नज़र डाली। घुटनों के बल चल रही अपनी लाडली को पहली बार कदम उठाते देख आँखें भर आने को जिया। कोई ज़्यादा समय नही लगा इन अहसासों की पगडंडियों से होकर गुजरने में।
अब हालात ठीक होने की दिशा में हैं। सब वापिस पटरी पे आने लगा है। सब अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पूरे ज़ोर से आगे बढ़ेंगे, बढ़ना भी चाहिए। हमारी संस्कृति भी यही सिखाती है की जिंदगी जब कभी मुश्किलात लाये तब ताकतें झोंक देने से हम पुराने से भी बेहतर परिस्थिति पैदा कर लेते हैं। कोरोना के बाद इसी मंशा की दरकार होगी। ज़रुरत यह भी है की कोरोना के भयावह चेहरे को भूला दिया जाए। पर इस बीच जिन अहसासों की थपकी हमे लगी है उनका साथ रहना अब ज़रूरी है।
अंग्रेजी में कहते हैं, " To be seen and heard" देखे और सुने जाने का अभाव कई बार मन को पथरा देता है। जिंदगी रूखी लगने लगती है। ऐसे में जब हम उनसे बात कर लें, उनकी सुन लें, थोड़ा लगाव जता दें तो उनकी दिल की ज़मीन पर संवेदना की फुहार होती है, बेमानी जिंदगी में जिजीविषा पनपने की कोशिश करती है। मन के वीराने में परवाह का संगीत बजता है, अच्छा लगता है।
हम अपने मददगारों को याद से धन्यवाद् करते हैं, करना भी चाहिए। फिर अपनों को इस अहसास से महरूम क्यों रखें? इन अपनों को देखना, उन्हें सुनना, हमने अपनी मर्जी पे ले लिया है। प्यार तो हम उनसे करते ही हैं, क्यों ना उन्हें भी कभी कभी प्यार जता भी दें।
कई बार परिवार वालों के अलावा भी ऐसे सगे लोग जिंदगी में मिलते हैं जो आपकी राहों को आसान बनाते हैं। तो ऐसे सभी का जो आजमाइश के वक़्त साथ होते हैं, उन्हें भी कभी देख आएं, बात करें, यह अहसास दें की आपको उनके होने का फर्क पड़ता है। इसलिए वे लोग जो आपकी ज़िन्दगी को देखते हैं, आपको सुनने में दिलचस्पी रखते हैं, उनका बड़ा महत्व है।
यह अहसास जीवन को जश्न बनाता है की
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