आसान नहीं होता आज की नारी से प्यार करना, क्यूंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी,
झुकती नहीं वो कभी जब तक ना हो रिश्तों और प्रेम की मजबूरी।
तुम्हारी हर हाँ में हाँ और ना में ना कहना वो नहीं जानती, क्यूंकि उसने सीखा ही नहीं झूठ की डोर में रिश्तों को बांधना।
वो नहीं जानती स्वांग की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना, वो जानती है बेबाकी से सच बोल जाना।
फिजूल की बेहेस में पड़ना उसकी आदतों में शुमार नहीं, लेकिन वो जानती है तर्क के साथ अपनी बात रखना।
वो क्षण-क्षण गहने कपड़ों की मांग नहीं किया करती, वो तो संवारती है स्वयं को आत्मविश्वास से, निखारती है अपना व्यक्तित्व मासूमियतभरी मुस्कान से।
तुम्हारी ग़लतियों पर तुम्हे टोकती है, तो तकलीफ में तुम्हे संभालती भी है।
उसे घर संभालना बखूबी आता है, तो अपने सपनों को पूरा करना भी।
अगर नहीं आता तो किसी की अनगर्ल बातों की मान लेना।
पौरुष के आगे वो नतमस्तक नहीं होती, झुकती है तो तुम्हारे निस्वार्थ प्टेम के आगे।
और इस प्रेम की खात्री अपना सर्वस्वा न्योछावर कर देती है।
हौसला हो निभाने का तभी ऐसी नारी से प्यार करना,
क्यूंकि टूट जाती है वो धोखे से, छलावे से, फिर जुड़ नहीं पाती किसी प्रेम की खातिर।
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