जीवन की धुप छाँव में जीवन संगिनी का समर्पण


यूं ही सुबह होती है और यूं ही हो जाती है शाम। ज़िंदगियां यूं ही चली जा रही हैं। एक बड़ा हिस्सा नौकरी में चला जाता है, ये ख्याल रिटायर होने के बाअद ही आता है। बच्चों की पढाई, शादी और तमाम जिम्मेदारियां भी निभा दी जाती हैं। अब जिंदगी की शाम में होते हैं दोनों। चकवा-चकवी के जैसे साथ में। कोरोना की वजह से बिलकुल साथ में। इन दिनों कुछ दिल खुले कुछ आँखें खुली। तेह-दर-तेह समझने की कोशिशें हुइ की ये 'बेरोजगार' पत्नी ने आखिर क्या ही किया है मेरे लिए, मेरे बच्चों के लिए , घर के लिए। 


बुखार और साँस में तकलीफ के कारन उसे 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन किया गया था। तब अहसास हुआ की वह तो अब तक बीमार रहने पर भी काम करती आयी है। कहती "लेट जाने पर ज़्यादा बीमार लगते हैं। चलता -फिरता इंसान ही ठीक लगता है।" अब किचन में जाने पर 'होम मिनिस्टर' की अहमियत का भान होता गया। मालूम हुआ की उसने केवल खाना ही नहीं बनाया बल्कि बनाया है इस घर को, मुझे, मेरे बच्चों को। 


धनियां थोड़ा बारीक काटा करो 

कभी धनिये को बारीक कुतरने की  तो कभी हरी मिर्च क महीन काटने की सलाह दिया करते। की परोसा हुआ छ लगता है और खाने में भी नजाखत आती है। लगता था छोटा सा तो काम है। पर आज जब खुद मिर्च काटी तो समझ में आया की मिर्च काटने पर हाथों में लगती है। 

धनिया के पत्ते बारीक काटने वक़्त कई बार अंगुलियां भी कट जाती हैं। और अब तो उसकी अँगुलियों में पुराणी ताकत भी नहीं होगी, जोड़ों में दर्द भी रहता होगा। अब उसे कुछ भी कहने से पहले कई बार सोंचेंगे।  


अहसास हुआ , सम्मान जागा

सिर्फ एक कप चाय (खुद के लिए) बना के लगा कोई बड़ा काम कर लिया हो। और वह पूरे घर के लिए दो वक़्त का नाश्ता और खाना और सबकी छोटी छोटी भूख का सामान न जाने कब बना के, थाली में परोस के, हाथों में लिए खड़ी रहती है। और पर्व - त्योहारों के पकवान तो अलग। और हम कभी अधः नाश्ता करके ही उठ जाते तो कभी हड़बड़ी में नाश्ता ही छोड़ देते अपना "समय बचाने" के लिए और उसका मन बेहद दुखी हो जाता की हम भूखे ही घर से चले गए। हम तो अपने ऑफिस - कैंटीन में नाश्ता क्र भी लेते पर वो अपने नाश्ते को अक्सर करना भूल ही जाती। उसकी अतुलनीय पाककला के लिए हमारे मुंह से तारीफ का कोई शब्द तो कभी कबार ही फूटता। और आज खुद की बनायी बेस्वाद चाय पे खुद को शाबाशी दे रहे हैं। उसकी प्यार से बनाई चटाखेदार सब्जी को कई बार थाली में आधा ही छोड़ देते थे की बस अब और नहीं खाना और वह बुझे चेहरे से पूछती की क्या हुआ? आज ठीक नहीं बनी? और हम पलटकर बस इतना भर कह देते की हाँ, ठीक ही है। 


एक छोटी सी दुनिया ही तो होती है इनकी। इसमें पति सबसे अहम होता है और घर तो सब कुछ है इनके लिए। जिंदगी के सभी आड़े-त्रिची रास्तों पर हमेशा साथ खड़ा पते हैं हम उसे। वह अपनी सहज स्वाभाव और अनुभव से सब कुछ सरल बना देती है। ज़िन्दगी के सफर में हमसफ़र का साथ बहुत ज़रूरी है इसलिए उसकी आत्म की खूबसूरती को नज़रअंदाज़ करने की भूल जो अब तक करते ए हैं हम सब, अब ना करें। 


घर -परिवार को संभालने के लिए हर वो चीज़ जो हमे छोटी और आसान लगती रही है, वह इतनी छोटी और आसान कभी न होती आगरा, उसने आसान बनाई न होती। वह घर में ही घी निकलती है दूद की मलाई को इकठ्ठा करके, दही घर पर ही जमाती है। आज जब हमे करना पड़ा तो वक़्त ही नहीं मिला इन कामों के लिए तो। घर की हर चीज़ को करीने से रखती है, घर को सजाती है और हमे सवांरती है। पहले जब इस रसोई में एते थे तब एक खुशबू सी आती थी और आज जब ह्यूमेन काम अभी शुरू ही किय है तो पता नहीं क्यों एक अजीब-सी गंध आने लगी है। 


बालों में चांदी आ गई है 

घर के कांच-खिड़कियों पर तो उसने धुल तक नहीं जमने दी कभी। पर आज जब ध्यान से उसे देखा तो पता चला की चांदी आ गयी है उसके बालों में ,और हाथों की नरमी बर्तनो की धुलाईऔर साफ़ सफाई ने न जाने कब छीन ली। खुद को समर्पित क्र दिया उसने हमारे लिए, उसका जीना बस हमारे लिए।             


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