मौज की धुन पे नाच ले पागल!
जो उड़ता है तो उड़ने दे आँचल
मुझे अनजान लोगों के साथ रुक कर, अनजान सड़कों पर देर - सवेर, रास्ते - बेरास्ते चलते - भटकते, नाचते - गाते, सोते- जागते, एकदम सुरक्षित, निश्चिन्त, बेफिक्र और बेपरवाह महसूस करना है। मुझे यह भारत की हर सड़क चलते हुए महसूस करना चाहती हूँ।
क्यों नहीं चलने देते तुम मुझे? क्यों मुझे रह-रहकर नज़रों से नंगा करते हो? क्यों तुम्हें मैं अकेली चलती नहीं सुहाती? मेरे महान देश के नारी - पूजकों, जवाब दो। मेरी महान संस्कृति के रखवालों, जवाब दो। मुझे बताओ मेरे कल्चर के ठेकेदारों, क्यों इतना मुश्किल है एक लड़की का अकेले घर से निकलकर चल पाना ?
जो समाज एक लड़की का अकेले सड़क पर चलना बर्दाश्त नहीं कर सकता, वह समाज सड़ चूका है। वह कल्चर जो एक अकेली लड़की को सुरक्षित महसूस नहीं करा सकता, वह गोबर कल्चर है। उस पर तुम कितनी ही सोने-चांदी का वर्क चढ़ाओ, उसकी बास नहीं रोक पाओगे, बल्कि और धँसोगे।
दे दो मुझे ये। मैं अपने देश में जीना चाहती हूँ। अपने देश में चल सकना चाहती हूँ। वैसे जैसे चलना चाहिए किसी भी मनुष्य को, क्या मर्द, क्या औरत। बेफिक्र, बेपरवाह, स्वतंत्र मन और स्वतंत्र विचार से, स्वतंत्रता के एहसास से।
यारों चलो। जानती हूँ आसान नहीं है ऐसा करना जितना आसान की कह पाना। पर जो भी है हम ही को करना है। सामने वाला तो कभी नहीं चाहेगा की तुम अपनी उन्मुक्तता से देश दुनिया देखो। सदियों से ऐसा होता आ रहा है और अगर हमने इस कड़ी को ना तोडा तो आगे भी ऐसा ही रहने वाला है। यार, हम दुनियां देखने के लिए, अपनी खुशियों को जीने के लिए किसी के रहमोकरम पर निर्भर नहीं रह सकते। वो तो घूम ही रहा है, और तुम्हारे ऊपर उसके साथ सामांजस्य बिठाने का दारोमदार है सो तुम्हारा घूमना तो ठन्डे बस्ते में धरा रह गया।
अपने गांव में नहीं चल पा रही हो तो, शहर में चलो। शहर में ना हो पाया तो देश में चल। वहां भी बात ना बने तो ये दुनिया अपनी भी है, अपनी दुनिया में चल। पर निकल घर से, चल। बेफिक्र, बेपरवाह, बेकाम। इन अनुभवों पर तेरा भी हक़ है।
हम चलेंगे, हमारी बेटी भी चलेगी। जब हमारी बेटियां साथ में चलेंगी तो आज़ाद, बेफिक्र, बेख़ौफ़ ही चलेंगी। फिर इस दुनियां को हमारे चलने की आदत हो ही जाएगी। जो तब भी ना हुई, तो हम डलवा देंगे। पर किसी अच्छी बच्ची का तमगा पहनने के लिए घर नहीं बैठेंगे।
बाहर निकलकर खुद की हिम्मत और जज्बे पर खुद यकीन करना, कोई और उसे तोड़ने के लिए पहले से ही बेसब्र बैठा है, पर तू मत घबराना। हिचकियाँ आये तो पी जाना, जाहिर मत होने देना। तू खुद अपना सहारा है। ये बड़ी मज़बूती है। मैं तो कहती हूं धन्यावद दे उस पुरुष को जिसने तुझे नाकारा, तुझे बेचारी कहा। ये सुन के जो आग जली है ना उसे ईंधन बना। तुझे किसी और की ज़रुरत नहीं।
तू खुद के साथ घूम। तेरे सपने, तेरी खुशियां, तेरा उत्साह, तेरे दुःख, तेरी संवेदना, तेरी परेशानी, तेरी गलतियां, तेरी तन्हाई सब साथ लेकर इस दुनियां के नायब नज़ारे देख। ये दुनियां तेरे लिए बनी है। जा, खोने की फिक्र ना कर, बस खो जा और दुनिया के अध्भुत खजाने ढूंढ।
जा यार, जा। निकल जा। देख, जान, जी। कुछ पा ले, कुछ खो दे।
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