नौ दिन जिंदगी के | Navratra Inspiration

क्या केवल नौ दिन ही चाहिए?

खिला मन - खुश सेहत

 

Navratra Inspiration

नवरात्र महोत्सव आने को है जब हम सब माँ के अनेक अवतारों का आह्वान करेंगे जो शक्ति है, अस्त्रों- शस्त्रों के साथ असुरों का वध भी करती है। कौन हैं ये असुर? कहां रहते हैं ये? हमारे ही भीतर। उत्तेजना, गुस्सा, जलन, घिन्न,अहंकार (ego), लालच, यही तो हैं वो आसुरी शक्तियां, ठीक अंदर हमारे। 

इन्ही बदमिज़ाजी के इलाज के दिन आये हैं। जब हम कहते हैं की हम अकेले हैं, कमजोर महसूस करते हैं। हम कहते हैं की ये फलानी चीज़ मेरे बस की नहीं। असल में, ऐसा नेगेटिव कहते -कहते हमने अपने अंदर की शक्ति को खाली कर दिया है। इसलिए ये नौ दिन उस ऊर्जा को वापस लाने के लिए हैं, इसलिए शक्ति का आह्वान करने की परम्परा है। 

व्रत लेना है की मैं गुस्सा नहीं करुँगी, कुढ़ना बंद करुँगी, परचिंता (overthinking) नहीं करुँगी, चुगली नहीं करुँगी, किसी का बुरा नहीं सोचूंगी, तामसिक (non vegetarian) खाना नहीं खाउंगी, चिल्ला कर बात नहीं करुँगी। ध्यान कर अपने अंदर की शक्ति बढ़ाउंगी। 

क्या खाना है, इसका बड़ा महत्व है। खाना हल्का होगा तभी मन भी हल्का महसूस करेगा। साथ ही इस बात का भी ख्याल रखने की ज़रुरत है की खाना बनाने के लिए लाइ गयी सामग्री उस धन से हो जो तरीके से कमाया हुआ हो। कहाँ बनाते वक़्त माहौल भी हल्का हो। दुखी मन से या गुस्से से हम अपने परिवार के लिए ज़हर बना रहे होते हैं, खाना नहीं। 

और एक बात, व्रत केवल करने के लिए नहीं करना। मजबूरी में पूरी की गयी प्रतिज्ञा से कोई ताकत नहीं मिलती। इसलिए मुंह से नहीं मन से व्रत करिये। 

रास और गरबा भी एक भाव का प्रतीक हैं। यह भाव है सामंजस्य का, सहयोग का। अगर तालमेल के साथ (डांडिया) डंडे ना मारे जाएं तो वही रियाज़ युद्ध का बन जाएगा। इसलिए तारतम्य ज़रूरी है, ताकि ज़िन्दगी खुश हाल लगे।

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