उत्सवी उत्साह को जिंदगी में ऐसे थाम लिया जाए
पर्व खुशगवारी लाते हैं। कई दिन पहले से ही हम इसकी तैयारी में जुट जाते हैं। वो उत्साह, वो उमंग हमारी दिनचर्या में कुछ दिनों के लिए शामिल हो जाते हैं। पर त्यौहार बीत जाने के बाद जैसे सब शांत-सा हो जाता है। सन्नाटा इतना गहरा जाता है की मानों मन ने एक उदास चादर ओढ़ ली हो।
रौनक के बाद उदासी क्यों घेर लेती है?
अचानक वे तमाम नए काम गायब हो जाते हैं हमारी रोज की दिनचर्या से जो उत्सव के आने से जुड़ गए थे। वो रौनकी मिज़ाज़ ना होने से मन एक खालीपन सा महसूस करने लगता है। कुछ कंफ्यूज हो जाते हैं हम की अब क्या करें। कई इस बदलाव में एडजस्ट ना होने से असहज से रहते हैं। किसी को तनाव भी हो जाता है।
त्यौहार के बाद का तनाव क्या होता है?
- पुराने रूटीन में लौटने का मन नहीं होता।
- किसी काम में मन नहीं लगता, नीरसता रहती है।
- बीता याद करने पर जी उदास हो जाता है।
- शून्य को ताकते रहते हैं, पर कुछ करने का मन नहीं होता।
- लगता है जैसे अच्छा समय बीत गया अब फिर रंगीनियत कैसे आएगी?
- जिंदगी का जायका फीका-सा लगने लगता है।
तो क्या करें की ये उत्सव बना रहे, हमेशा?
- सुबह से मिलें। जी हाँ। खुद को भोर में उठा क्र तैयार कर लें और घर से बाहर निकलें। टहलें। जिन्होंने ये पहले कभी नहीं किया, आज़मा कर देखें। आप एक नयी खिली हुई दुनियां से मिलेंगे। एकदम ताज़गी से भरपूर। यह दिन का वो वक़्त है जब प्रकृति की आवाज़ें हमें सबसे साफ सुनाई देती हैं। पेड़, फूल, चिड़िया, कबूतर, पानी की नहर, हवा - इन से बतियाएं।
- कोई काम मसालेदार और स्वादिष्ट रेसिपी बनाएं। त्यौहार में वैसे भी तली हुई और मीठी चीज़ें बहुत खा चुके हैं तो अब सेहत के लिए जायका बनायें। हल्का खाना -हल्का मन।
- शहर का कोई नया कोना देखने जाएं। दोस्तों संग घूमें। तस्वीरें लें, सोशल मीडिया की जगह एल्बम बनायें। उनके बारें में किस्से लिखें, अनुभव लिखें।
- घसे हुए बेरंग-बदरंग कपड़ों को अलग कर लें। जीवन में रंग के लिए कपड़ों का रंग भी अनुकूल होना चाहिए। मुस्कुराते रंगों के कपडे पहनिए। थोड़ा सा सज-संवर लीजिये। हर दिन।
- पसंदीदा गाने, किताबें, कॉफ़ी/चाय, फूल, बारिश चाँद आदि ये सब परखे हुए मूड बूस्टर्स हैं। कर के देखिये। सोइ रौनक खिलने लगेगी।
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