क्यूंकि कहानियां बचपन को पूरा करती हैं और परवरिश को सार्थक

नन्हे-मुन्हें बच्चों की मुट्ठी में कहानियों की उत्सुकता दें

bachhon ko bachpan ki kahaniyan sunayen


बचपन की सेहत में सम्पूर्णता हो इसके लिए संस्कार  कहानियों का होना बेहद ज़रूरी है। क्यूंकि इनके अभाव में हम इंसानों का नहीं बल्कि रोबोट का निर्माण किये जा रहे हैं। 

आज से कुछ दशकों बाद क्या कोई बच्चा हमारी आज की जीवनशैली पर विश्वास करेगा? बिलकुल नहीं। वो यह यकीन नहीं कर पाएंगे की हम 9 से 6 काम किया करते थे। वे इस बात से हैरान रह जाएंगे की हम घंटों फ़ोन की छोटी सी स्क्रीन में मग्न रहते थे। हम खुद कार चलाते थे ये बात हरगिज़ नहीं मानेंगे। ये बताने पर तो वह हंस ही पड़ेंगे की हमारी विशालकाय अट्टालिकाओं पर लिखा होता - आग लगने पर सोशल मीडिया के लिए फोटो लेने से पहले बाहर निकल कर खुद को सुरक्षित कर लें। 

क्या वे ये मानेंगे की यात्रा करते समय हमारे पिताजी सारे सामान गिनते थे, परिवार के सदस्यों को भी गिनते थे और फिर हम आगे बढ़ते थे जैसे हम बत्तख के परिवार को सड़क पार करता देखते हैं। हम भी पिताजी के पीछे वैसे ही चलते थे और आखिरी में माँ होती थी जैसे ट्रैन में गॉर्ड का डिब्बा होता है।   

उनके लिए ये मांनना बहुत मुश्किल होगा की पहले डाकिये सिर्फ नाम से ही चिट्ठियां पहुंचा देते थे। क्यूंकि वे सभी को जानते थे। गांव में तो डाकिये ना सिर्फ चिट्ठी पहुंचाते थे बल्कि अगर किसी को पढ़ना ना आये तो उसके घर बैठकर चिट्ठी पढ़कर भी सुनाते। कई बार वे किसी की चित्तियाँ लिखते भी थे। जबकि पगार उन्हें केवल चिट्ठी पहुंचाने की ही मिलती थी। 

बैलगाड़ी पर बैठकर नानी-दादी के घर जाना। हिलते-उचके, धीमे-2 घर तक जाने की यात्रा जिसमे बैल की पूँछ कई बार गुदगुदी करती थी। 

ये और इस तरह की तमाम बारीक अनुभव कहानियों में संजो कर बच्चों को सम्पदा के रूप में ज़रूर दें। बीतते ज़माने के ये अनुभव भावी पीड़ी के लिए निश्चित ही धरोहर हैं। जब ये कहानियां साझा होंगी बच्चों से तब रोबोट नहीं व्यक्तित्व बनेंगे।  

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