ये जीना भी कोई जीना है लल्लू!

जिसे जीवित देख रहे हैं, वो भीतर से भी जीवित है! 

how smiling can change your life


आप कितने जिंदा हैं? महज़ सांसों का चलना, जीवित होने का कितना सही मापदंड है? रिसर्च पेपर्स के अनुसार मनुष्य की औसत उम्र बढ़ी है। यूं तो बिस्तर पर कराहता व्यक्ति भी जीवित की ही श्रेणी में आता है। पर ऐसे जीने को शायद आप भी जीना तो नहीं मानेंगे। तो आखिर सही आयु कितनी हुई? जितना वो वास्तव में जीया। और वास्तव में जीना क्या है? 

जीना यानी महसूस करना। नज़ारों को, गंध को, ज़ायके को, ध्वनि को, स्पर्श को। जब तक ये अनुभव हो सकें वह खिलता है, मुस्कुराता है, खूबसूरती आकर्षित करता है। जब कोई पूरी शिद्दत से खिलता है, समझ जाइये वह पूरे मन से जी रहा है। जिंदगी में अगर कुछ पाने जैसा है तो वह है खिलने की कला।  

खिलना फूलों का धर्म है। उसका जीवन तभी सार्थक होगा जब वह पूरा खिल कर महकने लगेगा। इसी धर्म की इस दुनिया को ख़ास ज़रुरत है। जो धर्म मुस्कुराहटें ही छीन ले उसे धर्म कैसे कह सकते हैं? अनजान को प्रणाम कहिये, वह उसे मुस्कुराकर ही स्वीकार करेगा। 

मुस्कुराने में विश्वशांति का संदेश छुपा है। पूरी कायनात एक ही भाषा में मुस्कुराती है। इसकी तरंगें भीषण क्रोध को धीमा और फिर शांत कर देती हैं। मुस्कुराहटों पे निसार होकर तो एक उम्र जी लेते हैं। बेहद सरलता से प्रकट किया जाने वाला भाव इंसानी कारणों की वजह से जैसे दुर्लभ ही हो गया है। 

जो खिल सके उसी का जीना सार्थक है।  





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