चलिए माफ़ करते हैं
उनके लिए नहीं, खुद के लिए और उनके लिए भी
हम सभी को जिंदगी में कभी कहीं किसी ने चोट पहुंचाई है, दिल दुखाया है। कभी किसी बड़े मसले पर या फिर किसी सामान्य बातचीत में। यह भाव चीज़ें कड़वी कर देती है। ऐसी कड़वाहटें हालात मुश्किल कर देती है और फिर हमारा किसी काम में जी नहीं लगता। और ये बहुत महंगा पड़ जाता है। तो चलिए माफ़ करते हैं, उस ग़लत बर्ताव को नहीं, माफ़ ऐसे करते हैं की उस बर्ताव से जो दुःख हुआ उसे भूल जाते हैं। यह खुद को अपनी ही जेल से आज़ाद करने जैसा है।
चाहे उन्होंने माफ़ी मांगी या नहीं, हम जितनी जल्दी उन्हें माफ़ कर देंगे उतना ही खुद को आहत होने से बचा लेंगे। वैसे, कुछ ऐसे भी होते हैं जो माफ़ किये जाने के लिए बेहद बेचैन होते हैं, पीड़ित रहते हैं। अपनी भूल की माफ़ी के लिए तड़प रहे होते हैं। अगर इस भाव का अहसास हो जाए तो उन्हें माफ़ कर हम दो दिलों को चैन पहुंचाते हैं, एक उनका और एक हमारा। इसलिए क्षमा दोतरफा शांति देती है। तो अगर आप भी इसी कतार में हैं, किसी से माफ़ी का इंतज़ार कर रहे हैं तो खुद भी उन्हें माफ़ करने की शरुआत कर दीजिये जिन्होंने आपको आहत किया है। और अगर अभी तक माफ़ी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं तो अब देर ना कर खुद को और परेशान ना करते हुए आगे बढ़ अपनी भूल मान, माफ़ी मांग लीजिये। और रिश्तों को आसान बनने दें।
माफ़ करते ही हल्का महसूस करने लगेंगे। हल्के होते ही इन बेमतलब के दुखों से ऊपर उठ जाएंगे। कुंठाओं से भरे रहना ज़्यादा नुक्सान करता है बजाय उसके जिसकी वजह से हम कुंठित हैं। हम अपने खून का केमिकल कम्पोजीशन बिगड़ने से बचा सकते हैं। खुद को अवसाद से आशावाद की तरफ मोड़ लेते हैं।
ज़रा सोंचिये, अगर हमारा मन उन्ही लोगों में लगा रहा जो हमारी भीतर की शांति को भंग करते हैं, हमारी ऊर्जा उसी मनहूस और फालतू ख्यालों में होती रहे तो हम अपने सपनों को पूरा करने की मेहनत कब करेंगे? किसी से प्यार करने का समय कैसे मिलेगा? किसी को मदद कब करेंगे?
नाराजगी हमारी रूह के लिए तेज़ाब है। दरअसल, यह खुद ज़हर पीकर दुसरे के मरने का इंतज़ार करने जैसा है।तो क्यों ना एक आदत डालें, सोने से पहले माफ़ी मांगे और देने की। अब तो आप जानते और मानते भी हैं की यह दोतरफा सुकून देगी। आप हल्का और खुश महसूस करने लगेंगे। कर के देखिये।
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