जब रिश्ते सिर्फ "क्या किया" से बनते हैं
तब उनमे वो मज़बूती नहीं रहती जिसे हम ढूंढ रहे हैं।
रिलेशनशिप, आजकल यही चिंतन का विषय है और चिंता का भी। हम एक दुसरे से कैसे बात कर रहे हैं, कैसा व्यवहार कर रहे हैं और सबसे ज़्यादा अहम - जिसे हम अक्सर गिनाते हैं - की एक दुसरे के लिए क्या करते हैं। हम यही बातें करते रहते हैं।
ना जाने कितने ही बार हम खुद को यह कहता हुआ पाते हैं की आपने हमारे इस रिश्ते के लिए क्या किया? और फिर सामने से जवाब भी आता की "मैंने इस रिश्ते के लिए ये किया, वो किया। ना पैसा देखा ना वक़्त न दिन ना रात, अपनी क्षमता से ज़ायदा किया तुम्हारे लिए। मैंने अपने बारे में भी नहीं सोंचा, सिर्फ तुम्हारे लिए करती गई।"
हमारा सारा जोर, हमने एक दुसरे के लिए क्या किया, इस पर रहता है। पर क्या आप जानते हैं, इस से ज़्यादा ज़रूरी क्या है? की हमने एक दुसरे के लिए क्या और कैसा सोंचा।
रिश्ते एक भाव का आदान - प्रदान है, जी हाँ, exchange of emotions. अब ये निर्भर हम पर करता है की वह कौनसा भाव हमे अपने परिजनों को देना है। वह भाव स्नेह का भी हो सकता है और कुंठा कभी, उम्मीद का भी या कोसने का भी, लगाव का भी या नफरत का भी। चाहे वो भाव/ ऊर्जा आप अपने अपनों को भेज सकते है। यह पूरी तरह हम पर ही है।
हम जो महसूस करते हैं, सोंचते हैं, बोलते हैं, या बर्ताव करते हैं वह हमारा वाइब्रेशन (स्पंदन) है जो हम अपने रिश्तों को भेजते हैं। हमारे परिवार वाले, दोस्त, सहकर्मी जो महसूस करते हैं, सोंचते हैं, बोलते हैं, या बर्ताव करते हैं वह उनका वाइब्रेशन (स्पंदन) है जो हम तक पहुँचता है। और इसी चिड़िया का नाम रिलेशनशिप है।
जब कोई दो ऐसी किसी ऊर्जा जो भेजते और पाते हैं वही रिश्ता है। इसे 'हम उनके लिए क्या कर रहे हैं' तक सीमित ना रहिये। चाहे घर हो या ऑफिस, हम जो कुछ कर रहे हैं, रिश्ता खूबसूरती से बढ़ता रहे, इसी के लिए तो कर रहे हैं। कुछ लोग पूरी जिंदगी लगा देने के बाद भी ऐसा महसूस करते हैं की रिश्ता उतना मजबूत नहीं हो पाया। ज़रा सी बात पर चीज़ें डगमगाने लगती हैं।
जिनके साथ हम बने रहना चाहते है, वहां सामंजस्य, ख़ुशमिज़ाजी, आसानी, और ऊर्जा का स्नेहिल बहाव लाने के लिए नाराज़गी, पुराना दुःख, अधूरी उम्मीद को बसने ना देना बेहतर रहेगा। आइये, उनके मन के पास चलते हैं, ये नज़रअंदाज़ करते हुए की उन्होंने क्या किया, क्या ना किया।
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