जिसे मन में जगह दी है, जुबां पर उसी की गंध रहती है
बातों का लहजा बता देता है कहने वाले का मन कैसा है
कुछ लोग हमेशा किसी ना किसी काम में मीनमेख निकालते रहते हैं। हर वक़्त सवाल ही उठाते रहते हैं। ना सिर्फ दूसरों के काम के प्रति आलोचनात्मक रवैया रखते हैं बल्कि खुद अपने कामों को लेकर भी परेशान ही रहते हैं। असल में, जो इनके पास है- बेचैनी, ईर्षा, दुःख, नुख्ताचीनी, चिड़चिड़ापन, वे यही दूसरों को भी देते हैं।
अब जरा दुसरे तरह के लोगों पर भी नज़र डालें जिनसे आपने किसी मुश्किल घड़ी में भी यही सुना होगा की सब ठीक हो जाएगा। इत्मीनान यहीं से आता है। इनके मन की महक इतनी आरामदायक होती है की लोगों को अपनी उलझने इनके पास साझा करने में बड़ी आसानी रहती है। हम सुझाव लेने इनके पास जाते हैं। ये हमारी पूरी बात सुनते हैं, समझते हैं, विकल्प सुझाते हैं, मदद से राह बनाते हैं।
इनके लहजे में, बातों में आलोचना का भाव नहीं होता। ये हमे कमतर महसूस नहीं कराते। शान्ति, सुकून, भरोसा जो इनके पास है, वही सब हमे महसूस होने लगता है इनकी सोहबत में। ये मधुर भाव उनकी सोंच का प्रतिबिम्ब ही तो है।
जिस कमरे में उथल-पुथल हो क्या आप सुकून भरी सांसें वहां ले पाएंगे भला? बस कुछ ऐसा ही हाल हमारे मन के कमरे का होता है। धीरज के धागे मन की साफ़-सुथरी जगह पर ही बुने जाते हैं। जो ज़रा सफाई की दरकार लगे तो कर लीजिये ताकि इत्मीनान तरंगित हो सके, कहां - भीतर।
जब भीतर सुकून गुनगुनाएगा, मन मुस्काएगा। मुस्कुराते व्यक्तित्व फिजाओं को रौशन रखते हैं। ये उजाले उलझनों के अंधेरे खोलकर, मन को उन्मुक्त करते हैं। बस, यही तो चाहिए, हम सभी को।
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